1. सामग्री
  2. पैगंबर (सल्लल्लाहु अ़लैहि व सल्लम) की आज्ञाएं व वसीयतें
  3. लोगों पर आसानी करना और उनको दुश्वारियों में ना डालना।

लोगों पर आसानी करना और उनको दुश्वारियों में ना डालना।

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तर्जुमा: ह़ज़रत सई़द बिन अबू दर्दाअ अपने पिता से बयान करते हैं कि नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने उनके दादा ह़ज़रत अबू मूसा और मुआ़ज़ रद़ियल्लाहु अ़नहुमा को यमन (का हाकिम बनाकर) भेजा तो उनसे फ़रमाया: " लोगों पर आसानी करना और उनको दुश्वारियों में ना डालना। और लोगों को खुशखबरियाँ देना और धर्म से नफरत ना दिलाना और तुम दोनों आपस में इत्तेफाक रखना।" इस पर ह़ज़रत अबू मूसा ने कहा: ए अल्लाह के नबी! हमारे वहाँ जौ से एक शराब बनाई जाती है जिसका नाम " मज़र " है। और शहद से एक शराब तैयार होती है जिसका नाम "बित्अ़" है। (उसका क्या हुक्म है?) आपने फ़रमाया:" हर नशा लाने वाली चीज़ ह़राम है। " फिर ये दोनों बुजुर्ग रवाना हो गए। ह़ज़रत मुआ़ज़ ने अबू मूसा से पूछा:" आप क़ुरआन किस तरह पढ़ते हैं?" उन्होंने बताया: " खड़े होकर, बैठ कर, और अपनी सवारी पर भी और रात में थोड़े थोड़े समय बाद पढ़ता ही रहता हूँ।" ह़ज़रत  मुआ़ज़ ने कहा:" लेकिन मेरी आदत यह है कि शुरू रात में सो जाता हूँ और फिर जागता हूँ। इस तरह में अपनी नींद पर भी सवाब की उम्मीद करता हूँ जिस तरह जागकर इबादत करने पर सवाब की मुझे उम्मीद है। फिर उन्होंने एक खैमा लगाया। एक दूसरे से मुलाकात बराबर होती रहती थी। एक बार ह़ज़रत मुआ़ज़ ह़ज़रत अबू मूसा से मिलने के लिए आए। उन्होंने देखा कि एक शख्स बंधा हुआ है। पूछा यह कोन है? अबू मूसा ने बतलाया कि यह एक यहूदी है जो पहले खुद ही इस्लाम लाया और अब इस्लाम से फिर गया है। ह़ज़रत मुआ़ज़ रद़ियल्लाहु अ़न्हु ने कहा कि मैं इसे ज़रूर मार दूंगा।

इस ह़दीस़ को बयान करने वाले ह़ज़रत सई़द बिन अबू दर्दाअ के दादा ह़ज़रत अबू मूसा अशअ़री अ़ब्दुल्लह बिन कैस और ह़ज़रत मुआ़ज़ बिन जबल रद़ियल्लाहु अ़न्हुमा को नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने यमन के दो अलग-अलग इलाकों का ह़ाकिम (यानी शासक) बना कर भेजा और ह़ाकिमों, क़ाज़ियों और मुफ्तियों को भेजते समय अपनी आदत के मुताबिक नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने इन दोनों को उल्लेखित वसियतें की। उनमें से हर एक वसीयत अपने बाद वाली वसीयत पर ज़ोर देती है।

हम इस ह़दीस़ की वज़ाहत यानी स्पष्टता में ज्यादा कुछ नहीं कहेंगे क्योंकि पिछली हदीसो में हम इस्लाम में आसानी और रवादारी की अहमियत पर अच्छी तरह बात कर चुके हैं।

नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि सल्लम के फरमान : " लोगों पर आसानी करना और उनको दुश्वारियों में ना डालना।" का मतलब है कि किसी चीज़ का आदेश व हुक्म जारी करने, कुछ बांटने, सदक़ों व खैरात, लोगों को नमाज़ पढ़ाने, उनके साथ बैठने, उन्हें लड़ने के लिए जंग के मैदान में लेजाने आदि सभी उन कामों में उनके साथ आसानी और नरमी करना जिनमें नरमी और आसानी करना चाहिए।

आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने लोगों के साथ सख्ती और दुश्वारी करने से उन्हें सख्ती से मना फ़रमाया। क्योंकि पहले आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने फ़रमाया: "लोगों पर आसानी करना। " और फिर बाद में उस पर जोर देकर फरमाया: "उनके कामों को सख्त व दुश्वार ना बनाना।" ताकि वे दोनों आपके आसानी के आदेश की अहमियत को अच्छी तरह से समझ जाएं और लोगों पर दुश्वारी ना करें।

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