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मैं अल्लाह के मुकम्मल (सम्पूर्ण) शब्दों की पनाह में आता हूँ।
तर्जुमा: ह़ज़रत मालिक कहते हैं कि यह़या बिन सई़द ने कहा कि मुझे यह खबर पहुंची की ह़ज़रत खालिद बिन वलीद रद़ियल्लाहु अ़न्हु ने रसूले करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम से कहा कि मैं नींद में डर जाता हूँ। तो उनसे रसूले अकरम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया: "तुम यह पढ़ा करो
(अऊ़ज़ु बिकलिमाति अल्लाही अल- ताम्माति मिन ग़द़बिहि व इ़क़ाबिहि व शर्रि इ़बादिहि व मिन हमज़ाति अल- शयातीनि व अन यह़द़रुनी)
यानी मैं अल्लाह के गुस्से, उसकी सज़ा, उसके बंदों की बुराई, शैतानी वसवसों और उनके मेरे पास आने से अल्लाह के मुकम्मल (सम्पूर्ण) शब्दों की पनाह में आता हूँ।"
अल्लाह के मुकम्मल (सम्पूर्ण) शब्द वह शब्द हैं जिनमें किसी प्रकार की न कोई कमी हो और न कोई ऐब़ हो जैसा के इमाम नववी ने कहा है।
और यह भी कहा गया है कि सम्पूर्ण शब्दों का मतलब लाभदायक और बीमारी ठीक करने वाले शब्द। यह भी कहा गया है इन शब्दों से मुराद क़ुरआन मजीद है। यह भी कहा गया है कि इन शब्दों से मुराद अल्लाह के नाम और उसकी विशेषताएं हैं। और यह भी कहा गया है कि इन शब्दों से मुराद वे तमाम चीज़ें हैं जो अल्लाह ने अपने अंबिया ए किराम पर उतारी।
लेकिन मेरे नजदीक सबसे अच्छी राय -और अल्लाह ही सबसे ज़्यादा जानता है - यह है कि इन मुकम्मल (सम्पूर्ण) शब्दों से मुराद: "सुबह़ानल्लह (यानी अल्लाह पाक है।),व अल्ह़म्दुलिल्लाह (और सभी तारीफें अल्लाह हि के लिए हैं।) व ला इलाहा इल्लल्लाहु (यानी अल्लाह के अलावा कोई इबादत के लायक नहीं) व अल्लाहु अकबर (यानी और अल्लाह सबसे बड़ा है।)" ।हैं। क्योंकि इनमें से हर एक शब्द शुद्ध तौह़ीद, पूरी पाकी और सबसे महान सौंदर्य और पूर्णता को दर्शाता है।
और शैतानी हमज़ात का मतलब है शैतान के वसवसे हम्ज़ अस्ल में अरबी भाषा का शब्द है और उसके मानें है: दबाना, निचोड़ना, धक्का देना और दूर करना। क्योंकि शैतान इंसान पर दबाव डालता है, उसके दिल को चिंता और गम से भर देता है, उसे बुराई की तरफ ढकेलता है और नेकी से दूर कर देता है करता है सीधे रास्ते से रोकता है। तथा मौत के समय उसके पास आता है ताकि उसे उसके धर्म से फैर दे और कलमा ए तौह़ीद यानी ला इलाहा इल्लल्लाह कहने से रोक दे। यही वजह है कि अल्लाह ने अपने नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम को यह आदेश दिया कि वह शैतानी हमज़ात यानी वसवसों से अपने अल्लाह की पनाह मांगे। इस ह़दीस़ पाक से हमें यह सबक मिलता है कि जब बंदा अल्लाह की बारगाह में दुआ़ करे तो अपने गुनाहों को याद करे अपने रब के ह़क में अपनी कोताहियों को याद करे। और दीन और दुनिया की कोई चीज़ मांगने से पहले यह दुआ़ करे कि अल्लाह उसे अपने गुस्से और अ़ज़ाब से सुरक्षित रखे भले ही दिल ही दिल में ऐसा करे। क्योंकि गुनाह का इकरार और उसकी सजा़ का डर इस दुआ करने वाले के लिए अधिक रास्ता खोल देगा और कोताही के बावजूद भी उसकी दुआ कबूल हो जाएगी इंशाअ अल्लाह।