1. सामग्री
  2. संदेह और उनके उत्तर
  3. महिला के फितना होने से संबंधित संदेह व ऐतराज़ का रद्द और जवाब और उसके शैतान की तरह होने का अर्थ

महिला के फितना होने से संबंधित संदेह व ऐतराज़ का रद्द और जवाब और उसके शैतान की तरह होने का अर्थ

878 2020/06/28 2024/12/18
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कुछ लोग यह एतराज़ करते हैं कि इस्लाम महिला को फि़तना क्यों घोषित करता है और उसे शैतान मानने का क्या मतलब है?

पहले प्रश्न का उत्तर देने से पहले हमें यह जानना बहुत ज़रूरी है कि शब्द " फि़तना " का क्या अर्थ है। क़ुरआन और ह़दीस़ में इस शब्द का प्रयोग बहुत से मानों में किया गया है। लेकिन ज़्यादातर इसका प्रयोग परीक्षा व इम्तिहान के माना में हुआ है। और मुझे नहीं पता कि जो लोग इस्लाम पर यह आरोप लगाते हैं कि वह औरत को फितना घोषित करता है वे कि शब्द "फि़तना" के अर्थ को जानते भी हैं या नहीं? और वे कु़रआन पढ़ते भी हैं या नहीं?

क्योंकि पवित्र क़ुरआन स्पष्ट रूप से हमें यह बताता है कि व्यक्ति अपने जीवन में जितने भी हालात का सामना करता है चाहे वे अच्छे हों या बुरे तो वे सब के सब फि़तना यानी परीक्षा और इम्तिहान हैं। अल्लाह तआ़ला इशाद फरमाता है।:

अनुवाद: और हम तुम्हें अच्छाई और बुराई से परखते (आज़माते) हैं। (अनुवाद: कन्ज़ अल-इमान)

(सूरह: अल अंबिया:38)

अनुवाद: वह जिसने मृत्यु और जीवन को बनाया ताकि तुम्हारी जांच हो कि तुम में से किस का कार्य ज़्यादा अच्छा है। (अनुवाद:कन्ज़ अल-इमान)

(सूरह: अल मुल्क: 2)

अनुवाद: और जान लो कि तुम्हारे धन (माल व दौलत) और तुम्हारी संतान (औलाद व बच्चे) केवल आज़माइश (परिक्षा) हैं। और यह कि अल्लाह ही के पास बहुत ज़्यादा स़वाब है। (अनुवाद: किताब तिबयान अल-क़ुरआन)

(सूरह: अल अनफ़ाल: 28)

अतः महिला फि़तना है इसका मतलब यह है कि महिला पुरुष के लिए परीक्षा और इम्तिहान है कि क्या पुरुष अपने अल्लाह के आदेश को भूल कर अपना सारा समय महिला के पीछे बर्बाद करेगा? और महिला की वजह से अल्लाह की नाफरमानी करते हुए उसे बुरी नजऱ से देखेगा? और क्या व उसकी खूबसूरती व सुंदरता में फंसकर उसके साथ नजायज संबंध करेगा? या फिर वह अपने अल्लाह से डरेगा और महिला के साथ सिर्फ जायज़ तरह से ही संबंध करेगा जिसमें उसके अल्लाह की प्रसन्नता व रज़ा हो?

और इसी तरह से पुरुष भी महिला के लिए परीक्षा और इम्तिहान है। वह इस तरह से कि अगर कोई व्यक्ति बहुत ही सुंदर और धनी हो लेकिन वह शरिअ़त की पाबंदी नहीं करता है और ऐसा व्यक्ति किसी महिला को शादी का संदेश दे तो क्या वह महिला उसकी सुंदरता और दौलत में आकर उसे अपना पति मानेगी या उसे अपना प्रेमी बनाएगी और अल्लाह की नाफरमानी करेगी? या फिर वह अपने दिमाग में यह रखेगी कि वह एक परीक्षा और इम्तिहान में है इसीलिए वह सिर्फ ऐसे ही व्यक्ति से शादी करेगी जो शरीअ़त का पाबंद हो? और उससे सिर्फ जायज़ तरीके से ही संबंध बनाएगी।?

और इसी तरह से बच्चे भी अपने माता-पिता के लिए एक परीक्षा और इम्तिहान हैं। वह इस तरह से की क्या यह बच्चे अपने माता-पिता के लिए अल्लाह की आज्ञा का पालन करने में रुकावट बनेंगे या नहीं? और क्या उनके माता-पिता उनकी इस्लाम के तरीके पर तरबियत करेंगे या नहीं? या फिर वह उनकी तबीयत पश्चिमी (यूरोप) लोगों की तरह करेंगे जिनका इस्लाम से कोई संबंध नहीं है।

अतः हकीकत यह है कि महिला को फि़तना यानी परीक्षा और इम्तिहान कहने में उसका का कोई अपमान नहीं है क्योंकि अल्लाह तआ़ला ने बच्चों को भी फि़तना यानी परीक्षा और इम्तिहान बताया है। तो क्या इसमें बच्चों का अपमान है? बिल्कुल नहीं क्योंकि जब हमें यह पता है फि़तने के माना इम्तिहान और परीक्षा व आज़माइश के हैं तो इस लिहाज़ से फि़तना शब्द का प्रयोग सब के लिए सही है जैसा कि अल्लाह ताआ़ला ने इस आयत में इरशाद फरमाया:

अनुवाद: और हमने तुम में एक को दुसरे की जांच (आज़माइश) किया है। और ऐ लोगों! क्या तुम स़ब्र करोगे? (अनुवाद: कन्ज़ अल-इमान)

(सूरह: अल- फ़ुरक़ान, आयत संख्या: 20)

अतः हम में से हर एक अपने आसपास वाले के लिए आज़माइश व इम्तिहान (यानी फि़तना) है।

दूसरा मुद्दा यह है कि क्या इस्लाम महिला को शैतान समझता है? बिल्कुल नहीं यह एक झूठा आरोप है क्योंकि अगर इस्लाम में महिलाओं के बारे में ऐसा दृष्टिकोण व नज़रिया होता तो यही पुरुषों के बारे में भी होता, क्योंकि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया:

अनुवाद: महिलाएं और पुरुष -जन्म और विशेषताओं में- एक जैसे हैं।

(अल-निसाउ शक़ाइक़ अल-रिजालि)

इसीलिए अगर महिलाएं शैतान हैं तो पुरुष भी शैतान होंगे। क्योंकि पुरुष जन्म में और पैदाइश में महिलाओं की तरह ही हैं।

लेकिन हकीकत यह है कि यह एक झूठा आरोप है जिससे इस्लाम के दुश्मनों का मक़सद व लक्ष्य लोगों को इस्लाम से रोकना और दूर करना है क्योंकि अल्लाह तआ़ला ने सभी मनुष्यों को चाहें महिला हो या पुरुष सबको बराबर सम्मान दिया है। अतः अल्लाह तआ़ला इरशाद फ़रमाता है:

अनुवाद: और बेशक हमने आदम के बच्चों को सम्मानित किया है।

(सूरह: अल-इसरा, आयत संख्या: 70)

इस्लाम में महिला को एक बड़ा स्थान प्राप्त है। और यह हर वह व्यक्ति जानता है जिसे महिलाओं से संबंधित इस्लाम का थोड़ा सा भी ज्ञान है।

हक़ीक़त में इन लोगों ने यह संदेह व एतराज़ (कि इस्लाम महिला को शैतान के रूप में देखता है।) एक ह़दीस़ शरीफ से लिया है जैसा कि ये हमेशा करते चले आए हैं कि ह़दीस़ों के ऐसे अर्थ बयान करते हैं कि जिनका ह़दीस़ों से कोई संबंध नहीं होता। एक सही़ह़ ह़दीस़ शरीफ में जिसे इमाम मुस्लिम और दुसरे मुह़द्दस़ीन ने उल्लेख किया है कि अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया:

अनुवाद: बेशक (फ़ितने में डालने के एतबार से) महिला शैतान के रूप में सामने आती है और शैतान ही के रूप में वापस चली जाती है। तुम में से जब कोई किसी महिला को देखे जो उसे भा जाए (यानी अच्छी लग जाए) तो वह अपनी पत्नी के पास आ जाए। (यानी उस से संभोग व जिमाअ़ कर ले) निश्चित रूप से ऐसा करना उस इच्छा को दूर कर देगा जो उसके दिल में (उस महिला को देखकर पैदा हुई) है।

डॉ. अ़ब्दुल-हकीम सादिक़ अल- फ़ैतूरी कहते हैं: इस हदीस शरीफ में ऐसा कुछ भी नहीं है जिस से इनकार इनकार किया जाए और ऐसी कोई भी चीज नहीं है जिससे महिला का अपमान होता हो। बल्कि ह़दीस़ शरीफ का मतलब यह है कि अल्लाह तआ़ला ने महिलाओं अंदर ऐसी चीज़ रखी है कि पुरुष उनकी तरफ खिंचते हैं और उन्हें देखकर उन्हें आनंद मिलता है, इसलिए उनकी तरफ देखना गुनाह और फि़तना का कारण है। अतः महिला की सूरत पुरुष को ऐसे ही बहका देती है और उसे पाप करने पर उकसा देती है जैसे कि शैतान मनुष्यों को बहका देता है और उन्हें पाप करने पर उकसाता है। और ऐसा देखा भी जाता है।

अतः यह ह़दीस़ शरीफ महिलाओं को ह़िजाब न पहनने के परिणाम से चेतावनी देने के बारे में आई है। ताकि पुरुष उनके कारण और वे पुरुषों के कारण भटक न जाएं। तथा महिलाओं को देख कर पुरूषों के अंदर जो इच्छा पैदा होती उसका भी इस ह़दीस़ शरीफ में इ़लाज बताया गया है। वह यह कि वह व्यक्ति अपनी पत्नी के पास जाकर उससे सम्भोग (शरीरिक संबंध) बना ले। क्योंकि ऐसा करने से उसके मन की इच्छा -अल्लाह के हुक्म से- खत्म हो जाएगी।

यह जो ऐतराज़ और संदेह हुए हैं ये इस्लाम में महिला की महानता के बारे में ज्ञान की कमी और इस गलत सोच की वजह से हुए हैं कि इस्लाम महिला की तुलना में पुरुष को ज्यादा सम्मान देता है और उसका पक्ष लेता। है जबकि कुछ ह़दीस़ों में पुरुष को भी उसके गलत काम की वजह से शैतान कहा गया है। अतः अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने ऐसे व्यक्ति को शैतान कहा है जो अपनी पत्नी के साथ अपने शरीरिक संबंध की बातों को दूसरों से बताए।  इसी तरह उस महिला को भी शैतान कहा है जो अपने पति के साथ शारीरिक संबंध की बातों को दूसरों से बयान करें। अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया:

अनुवाद: क्योंकि उसका उदाहरण ऐसा है जैसे एक (नर) शैतान किसी (मादा) शैताना से मिला और लोगों के सामने ही (बीच रास्ते में) उसके साथ बदकारी (सेक्स) करने लगा।

इस ह़दीस़ को इमाम अह़मद ने उल्लेख किया है। (उद्धरण खत्म हुआ)

अतः शैतान के जैसा होना महिला या पुरुष होने पर आधारित नहीं है। बल्कि पुरूष या महिला के द्वारा किये गये काम पर है। और यह अ़रबी भाषा का एक अंदाज़ है। इसका मतलब यह नहीं है कि वह पुरुष या महिला वास्तव में शैतान हैं। जैसा कि कुछ लोग समझ बैठे हैं और इसी गलत समझ व सोच को फैलाने की कोशिश में लगे हुए हैं।

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