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ए लोगों! मरने से पहले अल्लाह की बारगाह में तौबा कर लो।
तर्जुमा: ह़ज़रत जाबिर बिन अ़ब्दुल्लाह कहते हैं कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने हमें भाषण देते हुए फ़रमाया: "ए लोगों! मरने से पहले अल्लाह की बारगाह में तौबा कर लो। और दूसरे कामों में व्यस्त कर दिए जाने से पहले जल्दी जल्दी नेक काम कर लो। और अल्लाह का बहुत ज़्यादा ज़िक्र करके और जाहिरी (खुले) और खुफिया (गुप्त) तौर पर सदका़ करके उसके और अपने बीच रिश्ता मज़बूत कर लो। तब तुम्हें रिज़्क़ भी दिया जाएगा और तुम्हारी मदद भी की जाएगी।"
यह एक ऐसी वसियत है जो सभी प्रकार की भलाईयों को शामिल है जो नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने लोगों को दी है जो कि उनकी जिंदगियों के सुधार और उनकी अल्लाह तआ़ला तक पहुंच के लिए एक रोशन और बेहतर रहनुमा (मार्गदर्शक) है।
नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने इस वसीयत की शुरुआत अल्लाह की बारगाह में तौबा करने के द्वारा की। क्योंकि यह यानी तौबा अल्लाह की जानिब जाने वाले रास्ते की न केवल शुरुआत है बल्कि उसकी इंतिहा और उसका बीच का हिस्सा भी है। क्योंकि तौबा एक सच्चे और पक्के मुसलमान के हर समय साथ रहती है। वह रात और दिन उसी के साए में जिंदगी बसर करता है और जब भी उसे अपने किसी गुनाह, अपने अल्लाह की नाफरमानी का एहसास होता है और उसके अ़ज़ाब का ख्याल आता है तो वह फौरन अपने अल्लाह की बारगाह में तौबा करता है। लिहाज़ा इससे उसके बेचैन और तड़पते दिल को सुकून हासिल हो जाता है, इसमें अल्लाह की रह़मत (कृपा) मगफ़िरत (माफी व क्षमा) की उम्मीदें खिल जाती हैं और ना उम्मीदी और मायूसी (निराशा) दूर हो जाती है।
यहाँ पर हम तौबा के पाँच अरकान (स्तंभ) बयान करना चाहते हैं जो निम्नलिखित हैं:
पहला स्तंभ: गुनाह (पाप) की गंभीरता और उसके खतरों को जानना।
दूसरा स्तंभ: जल्दी से तौबा करना और गुनाह को छोड़ देना।
तीसरा स्तंभ: दोबारा उस गुनाह को ना करने का पक्का इरादा रखना।
चौथा स्तंभ: जो नमाज़े, रोज़े और ज़काते आदि छूट गई हैं उन्हें अदा करने का पक्का इरादा करना और जो कोताहिइयाँ हुई हैं जहाँ तक हो सके उनका भुगतान करना।
पांचवा स्तंभ: अगर किसी का कोई हक छीना है तो उसके हकदार और मालिक को उसे वापस देना और अगर मालिक ना हो तो उसके वारिस को देना और अगर वारिस भी ना हो तो उसकी तरफ से वह छीनी हुई चीज़ सदका़ कर देना।
तोबा करने वाले लोग चार प्रकार के होते हैं:
(1) जिनके नफ़्स संतुष्ट हैं: ये वे लोग हैं जो तौबा नसूहा़ (यानी सच्ची और ईमानदार तौबा) करते हैं और फिर जिंदगी भर उस पर का़यम रहते हैं।
(2) जिनके नफ़्स निंदा करने वाले हैं: ये वे लोग हैं जो सच्चे दिल से तौबा करते हैं और महत्वपूर्ण इ़बादतों में सीधे रास्ते पर चलते हैं, बड़े गुनाह छोड़ देते और जानबूझकर छोटे गुना भी नहीं करते। और अगर अनजाने में उनसे कोई छोटा गुनाह हो जाए तो खुद ही अपने आपकी मलामत (निंदा) करते हैं।
(3) मोहक नफ़्स वाले लोग: ये वे लोग हैं जिनका नफ़्स आमतौर पर उन पर हावी हो जाता है जिसकी वजह से उनसे गुनाह हो जाता है लेकिन कभी कभी वे उस पर का़बू पा लेते हैं।
(4) वे लोग जिनका नफ़्स गुनाह करने का आदेश देता है: ये लोग गुनाहों से तौबा करते हैं लेकिन उन्हें पूरे तौर पर छोड़ने का पक्का इरादा नहीं कर पाते और ना ही अपनी कोताहियों का भुगतान करने का पक्का इरादा कर पाते हैं। नतीजा यह होता है कि ये लोग फिर दोबारा गुनाहों में पड़ जाते हैं और फिर तौबा करने की नहीं सोचते।