1. सामग्री
  2. पैगंबर (सल्लल्लाहु अ़लैहि व सल्लम) की आज्ञाएं व वसीयतें
  3. अल्लाह से शर्म व ह़या करो जैसा कि शर्म व ह़या करने का ह़क है

अल्लाह से शर्म व ह़या करो जैसा कि शर्म व ह़या करने का ह़क है

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ह़ज़रत अ़ब्दुल्लाह इब्ने मसऊ़द (अल्लाह उनसे राज़ी हो) से रिवायत है वह कहते हैं: अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अ़लैहि व सल्लम) ने फ़रमाया: अल्लाह से शर्म व ह़या करो जैसा कि शर्म व ह़या करने का ह़क है, ह़ज़रत इब्ने मसऊ़द कहते हैं: " हमने कहा: ऐ अल्लाह के रसूल! हम अल्लाह से शर्म व ह़या करते हैं, अल्लाह का शुक्र है, पैगंबर (सल्लल्ललाहु अ़लैहि वसल्लम) ने फ़रमाया: यह मतलब नहीं है, अल्लाह से ह़या करने का ह़क यह है कि तू अपने सर और जो कुछ उसमें (आंखें, कान आदि) है उसकी सुरक्षा व हिफ़ाज़त कर,पेट और जो कुछ उसमें इकट्ठा है उसकी सुरक्षा कर, मौत और उसके बाद के हालात को याद कर, और जो कोई आखिरत (परलोक) का इरादा रखता है वह दुनिया की ज़ीनत और उसकी रंगीनी को छोड़ देता है, जिसने यह सारे काम किए उसने वास्तव में अल्लाह से शर्म व ह़या करने का ह़क अदा कर दिया। " (अह़मद, तिरमिज़ी)

इस ह़दीस़ शरीफ़ में ऐसी वसीयतें हैं कि अगर मुसलमान इनका पालन करे तो उसके दीन व दुनिया के भलाई के लिए काफी होंगीं,क्योंकि उनमें से हर एक वसीयत में ऐसी महान और प्यारी विषेशताएं हैं कि उनमें से हर एक विषेशता ईमान के सही होने और विश्वास और यकी़न की सलामती पर सुबूत और दलील है।

अल्लाह से शर्म व ह़या करने का मतलब यह है कि आप अपने से इसकी खोज करें, और इसे प्राप्त करने के लिए अपने आप को मजबूर करें, और जब भी आप अपने नफ़्स को पाते हैं कि वह ऐसे कार्य की तरफ खिंच रहा है जिसका अन्जाम अच्छा नहीं है, या वह गुणों में से किसी गुण व अच्छाई को कम व ह़क़ीर समझ रहा है, या कोई बुरा कार्य करता है, या किसी कर्तव्य को करने में लापरवाही करता है, या किसी प्रय कार्य का मूल्य घटाता है, या जायज़ चीज़ों को बहुत ज़्यादा हासिल करता है या फायदा ना देने वाली चीज़ों में पड़ता है तो ऐसे समय में उसको अल्लाह से शर्म व ह़या दिलाओ।

अतः शर्म व ह़या अच्छी और महान नैतिकता है, और वह ईमान के लिए ऐसा ही है जैसा बदन के लिए सर, इसी वजह से अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अ़लैहि व सल्लम) ने ईमान की शाखाएओं में इसे विषेश रूप से बयान किया, अतः आपने फ़रमाया:

"ईमान की साठ और कुछ शाखें हैं, और ह़या ईमान की एक शाख है।"

मेरे ज्ञान के हिसाब से ईमान की सभी शाखाएं ऐसे व्यक्ति में इकट्ठा नहीं हो सकतीं जिसमें शर्म व ह़या ना हो, क्योंकि ह़या ज़िन्दा दिल, जागते ज़मीर, अच्छे और महान एहसास का नाम है, और शर्म व ह़या व्यक्ति के लिए सीधा और भलाई का रास्ता आसान कर देती है भले ही उसमें कितनी रुकावटें हों और वह बुराई के रास्ते से नफ़रत करने लगता है भले ही उसमें फूल बिछे हुए हों।

 

 

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