1. सामग्री
  2. 30 वसियतें नबी सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम की दूल्‍हा-दुल्‍हन के लिए सुहागरात में
  3. (14) चौदहवीं वसियत: पति - पत्नी का एक साथ दो रकात नमाज़ पढ़ें

(14) चौदहवीं वसियत: पति - पत्नी का एक साथ दो रकात नमाज़ पढ़ें

पति के लिए मुस्तह़ब (यानी बेहतर) है कि वह सुहागरात को सम्भोग से पहले अल्लाह अल्लाह के लिए दो रकात नफ्ल नमाज़ पढ़े, और पत्नी को भी चाहिए कि वह उसके पीछे खड़े होकर दो रकात नमाज़ पढ़े, क्योंकि इससे उनकी सुहागरात में पूरी तरह से बरकत होगी।

अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने इन दो रकात नमाज़ पढ़ने की वसियत फ़रमाई है, आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने फ़रमाया: जब पत्नी पति के पास आए, तो पति खड़ा हो और पत्नी उसके पीछे खड़ी हो, फिर दोनों दो रकाअ़त नमाज़ पढ़ें, फिर पति यह दुआ़ पढ़े

(अल्लाहुम्मा बारिक ली फ़ी अहली, व बारिक लिअहली फ़ी, अल्लाहुम्मा उरज़ुक़्हुम मिन्नी, वरज़ुक़्नी मिनहुम, अल्लाहुम्मा इजमअ़ बइनना मा जमअ़ता फ़ी ख़ैरिन, व फ़र्रिक़ बइनना इज़ा फ़र्रक़्ता फ़ी ख़ैरिन)

अर्थ: ऐ अल्लाह! मेरे लिए मेरे परिवार वालों में और उनके लिए मुझ में बरकत दे, ऐ अल्लाह! उन्हें मेरे द्वारा और मुझे उनके द्वारा रिज़्क़ दे, और हमें भलाई पर इकठ्ठा रख, और जब तु हमारे बीच जुदाई करे तो (भी )वह भलाई के लिए हो। "

अबू उसैद के मौला (आज़ाद किये हुए) अबू सई़द से वर्णित है कि उन्हों ने कहा : मैं ने शादी की जबकि मैं अभी ममलूक (गुलाम) था, तो मैं ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के कुछ सहाबा को दावत पर बुलाया जिन में इब्ने मसऊ़द, अबू ज़र और हु़ज़ैफा -अल्लाह उन सभी से प्रसन्न हो - भी थे। वह कहते हैं : हम जब नमाज़ के लिए खड़े हुए तो अबु ज़र नमाज़ पढ़ने के लिए अगे बढ़े, तो सह़ाबा ने उनसे कहा : रुको, वह कहने लगे : क्या वास्तव में रुकूं? सह़ाबा ने कहा : हां, वह (यानी अबू सई़द) कहते हैं : उन्होंने (नमाज़ पढ़ाने के लिए) मुझे आगे कर दिया जबकि मैं गुलाम था, फिर उन्होंने मुझे शिक्षा देते हुए कहा: "जब तुम्हारे पास तुम्हारी पत्नी आए तो तुम दो रकअत नमाज़ पढ़ो, फिर तुम अल्लाह तआ़ला से उस चीज़ की भलाई मांगो जो तुम्हारे पास आई है, और उसके शर (बुराई) से अल्लाह का शरण व पनाह मांगो, फिर तुम जाने और तुम्हारी पत्नी।" ([2])

 


([1])  यह ह़दीस़ ह़सन लिग़ैरिही है, त़िबरानी ने " अल मोअ़जमुल औसत़" इसे बयान किया है, जैसा कि अल मजमअ़ में है (4/ 291), और सुलयमान की ह़दीस़ इसकी शाहिद है, इसे अबु भी नुऐ़म ने उल्लेख किया है। (1/56)

([2]) यह खबरे सही़ह़ है, मुसन्नफे इब्ने अबी शैबाह (3/401)

 

Previous article Next article

Articles in the same category

पैगंबर हज़रत मुहम्मद के समर्थन की वेबसाइटIt's a beautiful day