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सज्दे में इतमिनान
सज्दे में इतमिनानः
101- नमाज़ी पर अनिवार्य है कि अपने सज्दे को इतमिनान और सुकून से करे, और वह इस प्रकार कि सज्दे में अपने सज्दे के सभी अंगों पर बिल्कुल बराबर आश्रय करे, और सज्दे के अंग इस प्रकार हैं - पेशानी नाक समेत, दोनों हथेलियाँ, दोनों घुटने और दोनों पैरों के किनारे।
102- और जिस ने अपने सज्दे में इस प्रकार संतुलन से काम लिया, तो निश्चित रूप से उसे इतमिनान प्राप्त हो गया, और सज्दे में इतमिनान से काम लेना (इतमिनान से सज्दे करना) भी नमाज़ का एक रुक्न है।
103- और सज्दे के अन्दर तीन या उस से अधिक बार "सुब्हाना रब्बियल आ'ला" पढ़े। (और सज्दे में इस के अलावा दूसरे अज़कार भी हैं जिन्हें आप "सिफतो सलातिन्नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम" के पेज न0 145 में देख सकते हैं)।
104- सज्दे के अन्दर अधिक से अधिक दुआ करना मुसतहब (पसंदीदा) है ; क्योंकि यह क़ुबूल होने के अधिक योग्य है।
105- और अपने सज्दे को लम्बाई में तक़रीबन अपने रुकू के बराबर रखे, जैसा कि पहले गुज़र चुका है।
106- ज़मीन पर, या उन दोनों के बीच और पेशानी के बीच किसी हाइल (रुकावट) जैसे कपड़ा, कम्बल, चटाई वगैरह पर सज्दा करना जाइज़ है ।
107- तथा सज्दे की हालत में कुर्आन पढ़ना जाइज़ नहीं है।