1. सामग्री
  2. अल्लाह के पैग़म्बर मुहम्मद
  3. हज़रत पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के 

हज़रत पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के 

हज़रत पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लमके कुछ सदव्यवहार स्वभाव औरगुण-विशेषण.(तीसरा भाग)

२९. कृपा व दया (रहमत व शफक़त): अबू-मस`ऊद अन्सारी रजि़यल्लाहु अन्हु कहते हैं: एक आदमी पैग़म्बर सल्लल्लाहुअलैहि व सल्लम के पास आया और कहाः ऎ अल्लाह के पैग़म्बर! अल्लाह की क़सम मैं फलाँके कारण फज्र की नमाज़ से पीछे रह जाता हँ क्यांकि वह हमें लम्बी नमाज़ पढ़ाताहै। रावी अबू-मसऊद कहते हैं: जितना आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम उस दिन नाराज़हुए उस से बढ़ कर मैं ने आप को नसीहत के अंदर कभी नाराज़ होते हुए नहीं देखा, फिरआप ने फरमायाः "ऎ लोगो! तुम में से कुछ लोग नफरत घृणा- पैदा करने वाले हैं, तुममें से जो भी लोगों को नमाज़ पढ़ाए वह हल्की नमाज़ पढ़ाए, क्योंकि उनमें बूढ़े, कमज़ोर और ज़रूरतमन्द लोग भी होते हैं।"(सहीह बुख़ारी व सहीह मुस्लिम)

उसामा बिनज़ैद बयान करते हैं: हम पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ बैठे थे कि आपके पास आप की किसी बेटी का क़ासिद आया कि वह आप को अपने बेटे को देखने के लिए बुलारही हैं जो जांकनी की हालत में है। पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उस आदमीसे कहाः

"वापस जाकर उन्हें बतला दो कि जो कुछ अल्लाह ने ले लिया वह निःसंदेहअल्लाह ही का है और जो कुछ उसने प्रदान किया है वह भी उसी का ही है, और हर चीज़ काउसके पास एक निशिचत समय है। इसलिए उनसे कहो कि वह सब्र करें और अल्लाह से अज्र वसवाब की आशा रखें।"

आप की बेटी ने क़ासिद को यह कह कर दोबारा भेजा कि उन्हों नेक़सम खा लिया है कि आप अवश्य उनके पास आयें। इस पर पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उठ खड़े हुए और सअद बिन उबादा और मुआज़ बिन जबल भी आप के साथ हो लिए। बच्चेको आप के सामने पेश किया गया, उसकी साँस ज़ोर- ज़ोर से चल रही थी गोया वह पुरानेमाकीज़े में है। यह देख कर आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की आँखों से आँसू जारी होगए। सअद ने कहाः ऎ अल्लाह के पैग़म्बर ! यह क्या है? आप ने फरमायाः "यह वह दया औररहमत है जिसे अल्लाह तआला ने अपने बन्दों के दिलों में डाल दिया है, और अल्लाह तआलाअपने बन्दों में से दया व मेहरबानी करने वालों पर दया करता है। (सहीह बुख़ारी वसहीह मुस्लिम)

 

३०. बुर्दबारी (सहनशीलता) और क्षमाः अनस बिन मालिक कहते हैं: मैं पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ चल रहा था और उस समय आप एक मोटी किनारीवाली नजरानी चादर ओढ़े हुए थे कि एक दीहाती आदमी ने उसे पकड़ कर बहुत ज़ोर से खींचायहाँ तक कि मैं ने देखा कि ज़ोर से खींचने के कारण आप की गर्दन पर चादर के निाशनपड़ गये। फिर उसने कहाः हे मुहम्मद, तुम्हारे पास अल्लाह का जो माल है उस में सेमुझे भी कुछ दो। आप ने उसकी ओर मुड़ कर देखा और मुसकुरा दिया। फिर आप ने उसे कुछमाल देने का आदेश दिया। (सहीह बुख़ारी व सहीह मुस्लिम)

आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लमकी बुर्दबारी और तहम्मुल की एक अनुपम मिसाल ज़ैद बिन सअना -वह एक यहूदी आलिम था-की हदीस है, उसने पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को कुछ उधार दिया था जिसकीआप को कुछ मोअल्लफतुल-क़ुलूब यानी नौ-मुस्लिम की ज़रूरतों को निपटाने के लिए आवश्यकतापड़ गई थी। ज़ैद का कहना हैः अभी क़र्ज़ की अदायगी के नियत समय में दो या तीन   दिनबाक़ी थे कि पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम एक अन्सारी आदमी के जनाज़ा मेंनिकले, आप के साथ अबू-बक्र, उमर, उसमान और आपके के अन्य सहाबा रजि़यल्लाहु अन्हुमकी एक जमाअत थी। जब आप जनाज़ा पढ़ चुके तो एक दीवार के पास जा कर बैठ गए, तो मैं नेआप की क़मीस का दामन पकड़ लिया और आप को भयानक चेहरे के साथ देखा फिर कहाः हेमुहम्मद! क्या तुम मेरा हक़ (क़र्ज़) नहीं लौटाओ गे? अल्लाह की क़सम! मैं बनूअब्दुल-मुत्तलिब को टालमटोल करने वाला नहीं जानता और मुझे तुम्हारे मेल जोल (मामलेदारी) का पता है। ज़ैद का कहना हैः मैं ने उमर बिन खत्ताब को देखा कि उनकी दोनोंआँखें उनके चेहरे में गोल आसमान की तरह घूम रही हैं, फिर उन्होंने मेरी तरफ निगाह की और कहाः ऎ अल्लाह के दुश्मन! क्या तू अल्लाह के पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से ऎसी बात कर रहा है जो मैं सुन रहा हूँ और आप के साथ ऎसा व्यवहार कर रहा हैजो मैं देख रहा हूँ? उस ज़ात की क़सम! जिसने आप को हक़ के साथ भेजा है अगर मुझे एकचीज़ के छूट जाने का डर न होता तो मैं अपनी इस तलवार से तेरी गर्दन उड़ा देता।पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम सुकून व इतमिनान से उमर को देख रहे थे। फिर आपने फरमायाः

"ऎ उमर! हम इस से कहीं अधिक ज़रूरत मंद दूसरी चीज़ के थे कि तुम मुझेअच्छी तरह क़र्ज़ की अदायगी के लिए कहते और उसे अपने हक़ को अच्छी तरह से मांगने काहुक्म देते। ऎ उमर! इसे ले जाओ और इसका क़र्ज़ वापस कर दो और तुम ने जो इसे भयभीतकिया है उसके बदले २० साअऔर अधिक दे दो।"

 

ज़ैद ने बयान कियाः चुनांचे उमर मुझेलेकर गए और मेरा क़र्ज़ अदा किया और बीस साअ खजूर और अधिक दिया। मैं ने कहाः यहअधिक क्यों दे रहे हैं? उन्हों ने कहाः अल्लाह के पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुझे आदेश दिया है कि मैं ने जो आप को डराया-धमकाया है उसके बदले कुछ अधिकदे दूँ। मैं ने कहाः ऎ उमर! क्या तुम मुझे पहचानते हो? उन्हों ने कहाः नहीं, अच्छाबताओ तुम कौन हो? मैं ने कहाः मैं ज़ैद बिन सअना हूँ। उन्हों ने कहाः वहीयहूदियों का आलिम? मैं ने कहाः हाँ, वही विद्वान। उन्हों ने कहाः तू ने   पैग़म्बरसल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को जो कुछ कहा और आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ जो कुछ तुम ने किया तुझे इस पर किस चीज़ ने उभारा? मैं ने कहाः ऎ उमर, मैं नेपैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को देखते ही आप के चेहरे में  नुबुव्वत (ईश्दूतत्व-पैग़म्बरी) की सारी निशानियाँ पहचान लीं, केवल दो निशानियाँ आप के अंदरजांचनी रह गई थीं; उनका तहम्मुल और बुर्दबारी उनकी जहालत से बढ़ कर होगी और उनकेसाथ जितना अधिक जहालत से पेश आया जाएगा वह उतना ही अधिक बुर्दबारी और तहम्मुल सेपेश  आयेंगे। अब मैं ने इन दोनों निशानियों को भी जाँच लिया। ऎ उमर, मैं तुम्हेंगवाह बनाता हूँ कि मैं अल्लाह को अपना रब (पालनहार )मान कर, इस्लाम को अपना धर्म मानकर और मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को अपना ईश्दूत (पैग़म्बर) मान कर प्रसन्न होगया। और मैं तुम्हें गवाह बनाता हूँ कि मेरा आधा धन - और मैं मदीना में सबसे अधिकधनी हूँ- मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की उम्मत (समुदाय) पर ख़ैरात है। उमर नेकहाः बल्कि उनमें से कुछ लोगों पर, क्योंकि तुम्हारा धन उन सब के लिए काफी (पयार्प्त)  नहीं होगा। मैं ने कहाः बल्कि उन में से कुछ लोगों पर। फिर उमर और ज़ैद पैग़म्बरसल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास लौट कर आए तो ज़ैद ने कहाः मैं इस बात की गवाहीदेता   हूँ कि अल्लाह के अतिरिक्त कोई इबादत का योग्य नहीं और मुहम्मद सल्लल्लाहुअलैहि व सल्लम उसके बन्दा (दास) और पैग़म्बर हैं। इस प्रकार वह ईमान ले आया, आप कोसच्चा मान लिया और पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ बहुत सी जंगों मेंउपस्थित रहा, फिर तबूक के जंग में आगे बढ़ते हुए शहीद हो गए, अल्लाह तआला ज़ैद     पररहमतों की वर्षा करे। (सहीह इब्ने हिब्बान) पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम कीक्षमा और माफी का सब से बड़ा उदाहरण यह है कि जब आप मक्का में विजेता बन कर दाखिलहुए और आप के सामने मक्का के वह लोग पेश हुए जिन्हों ने आपको नाना प्रकार कीतकलीफें (यातनाएं) पहुँचाई थीं और जिनके कारण आपको अपने शहर से निकलना पड़ा था, तोआप ने उस समय जब वह मस्जिद में एकत्र् हुए उनसे कहाः "तुम्हारा क्या ख्याल है मैंतुम्हारे साथ क्या करने वाला हूँ? उन्होंने कहाः अच्छा ही, आप करम करने वाले भाईहैं और करम करने वाले भाई के बेटे हैं। आप ने फरमायाः "जाओ तुम सब आज़ाद हो !"(सुनन बैहक़ी अल-कुब्रा)

 

३१. सब्र (धैर्य) :पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सब्रऔर तहम्मुल के पैकर थे। चुनांचे अपनी दावत शुरू करने से पहले आप की क़ौम जो कामकरती थी और बुतों की पूजा करती थी उस पर सब्र करते थे, और अपनी दावत का आरंभ करन केबाद अपनी क़ौम की ओर से मक्का में जो नाना प्रकार की कठिनाईयाँ और परेशानियाँ झेलनीपड़ीं उन पर सब्र किया और उस पर अल्लाह के पास अच्छे बदले की आशा रखी। उसके बादमदीना में मुनाफिक़ों (द्वयवादियों) के साथ सब्र से काम लिया।

पैग़म्बरसल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अपने रिश्तेदारों और प्रिय लोगों की वफात पर सब्र काआदर्श थे; आपकी बीवी ख़दीजा की मृत्यु हो गई, फातिमा के सिवाय आपके सारे बाल-बच्चेआप के जीवन ही में मर गए, आपके चचा अबू-तालिब और हमज़ा का निधन हो गया; इन तमातहालतों में आप ने सब्र से काम लिया और अल्लाह तआला से पुण्य की आशा रखी।

अनस बिनमालिक कहते हैं: हम पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ अबू-सैफ लोहार केपास गए। उसकी बीवी आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के बेटे इब्राहीम को दूध पिलातीथी। पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इब्राहीम को लिया, उनको चुंबन किया औरसूँघा। इसके बाद फिर हम अबू-सैफ के पास गए, उस समय इब्राहीम की जान निकल रही थी।पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की आँखों से आँसू बहने लगे। इस परअब्दुर्रहमान बिन औफ़ ने कहाः ऎ अल्लाह के पैग़म्बर, आप भी (रो रहे हैं)!! आपसल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायाः "ऎ इब्ने औफ, यह रहमत और शफक़त के आँसूहैं "। इसके बाद फिर उन्होंने कहा तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायाः"आँख आँसू बहाती है, दिल दुखी है और हम केवल वही कहते हैं जो अल्लाह को पसंद है। ऎइब्राहीम, हम तेरी जुदाई पर दुखी हैं"। (सहीह बुख़ारी)

 

३२. अदल और इनसाफ (न्याय) :पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अपने जीवन के तमाम मामलों में न्याय करने वालेथे, अल्लाह की शरीअत (क़ानून) को लागू और नाफिज़ करने में इनसा़फ से काम लेते थे।आइशा रजि़यल्लाहु अन्हा कहती हैं: मख़जूमी औरत का मामला जिसने चोरी की थी क़ुरैशके लिए महत्वपूर्ण बन गया तो उन्हों ने आपस में कहाः इस के बारे में     पैग़म्बर सल्लल्लाहु  अलैहि व सल्लम से कौन बात करेगा? उन्होंने कहाः पैग़म्बरसल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के चहीते उसामा बिन ज़ैद के सिवा इसकी हिम्मत कौन करसकता है? उसामा ने पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से इस बारे में बात की तोआप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायाः "क्या तुम अल्लाह के एक हद (धार्मिक दण्ड) के बारे में सिफारिश करते हो !!" फिर आप खड़े हुए और खुतबा (भाषण) देते हुएफरमायाः "तुम से पहले के लोग इस कारण तबाह कर दिए गए कि जब उनके अंदर कोई शरीफ(खानदान वाला) चोरी करता था तो उसे छोड़ देते थे और अगर उनके अंदर कोई नीच आदमी चोरीकरता था तो उस पर हद (दण्ड) लगाते थे। अल्लाह की क़सम! अगर मुहम्मद की बेटी फातिमा भीचोरी करे तो मैं उसका हाथ काट दूँगा"। (सहीह बुख़ारी और सहीह मुस्लिम)

 पैग़म्बरसल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अपने नफस से बदला लेने में भी न्याय करने वाले थे, उसैद बिन हुज़ैर कहते हैं: एक अन्सारी आदमी लोगों से बात कर रहा था और वह कुछमनोरंजक आदमी था, इस बीच कि वह लेागों को अपनी बातों से हंसा रहा था   पैग़म्बरसल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उसकी कमर पर एक लकड़ी से मार दिया, तो उसने कहा मुझेबदला दीजिए, आप ने कहाः "बदला ले लो उसने कहाः आप क़मीस पहने हुए हैं और मैंबिना क़मीस के हूँ, इस पर आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपनी क़मीस उठा दी, तोवह आप से चिमट गया और आपके पहलू को चूमने लगा, और कहाः ऎ अल्लाह के पैग़म्बर! मैंयही चाहता था। (सुनन अबू दाऊद)

 

३३. अल्लाह का डर और ख़ौफःपैग़म्बर सल्लल्लाहुअलैहि वसल्लम लोगों में सब से अधिक अल्लाह से डरने वाले और उसका ख़ौफ रखने वाले थे।अब्दुल्लाह बिन मसऊद रजि़यल्लाहु अन्हु कहते हैं: नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लमने मुझ से फरमायाः "मुझे क़ुरआन पढ़ कर सुनाओ"। मैं ने कहाः ऎ अल्लाह केपैग़म्बर, मैं आप को क़ुरआन पढ़ कर सुनाऊँ जबकि वह आप ही पर उतरा है!? आप ने कहाः  "हाँ,"  तो मैं ने आप को सूरतुन-निसा पढ़ कर सुनाई यहाँ तक कि मैं इस आयत परपहुँचाः "

 

"पसक्या हाल होगाजिस समय कि हम हर उम्मत में से एक गवाह लायेंगे और आप को इन लोगों पर गवाह बनाकरलायेंगे।" (सूरतुन-निसाः ४१)

आप ने फरमायाः "बस अब काफी है"। मैं ने आप की ओर देखातो आप की दोनों आँखों से आँसू बह रहे थे। (सहीह बुख़ारी और सहीह मुस्लिम)

आइशा  रजि़यल्लाहु अन्हा बयान करती हैं: पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम जब आसमान परगहरे बादल देखते तो कभी आगे होते कभी पीछे होते, कभी अंदर दाखिल होते और कभी बाहरनिकलते और आप का चेहरा बदल जाता। जब बारिश हो जाती तो आप इत्मिनान की साँस लेते।आइशा रजि़यल्लाहु अन्हा ने आप से इसका कारण पूछा तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लमने फरमायाः "मुझे क्या मालूम कि शायद वह ऎसे ही हो जैसे कि एक क़ौम ने कहाथा:

 

"फिर जब उन्हों नेबादल के रूप में अज़ाब को देखा अपनी घाटियोंकी ओर आते हुए तो कहने लगे, यह बादलहम पर बरसने वाला है, (नहीं) बल्कि दरअसल यह बादल वह (अज़ाब) है जिस की जल्दी मचारहे थे, हवा है जिस में दर्दनाक (कष्ट दायक) अज़ाब है।" (सूरतुल-अहक़ाफः२४)

(सहीहबुख़ारी औरसहीह मुस्लिम)

 

३४. क़नाअत -सतोष- और दिल कीबेनियाज़ीःउमर बिन खत्ताब रजि़यल्लाहु अन्हु कहते हैं: मैं पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आयातो मैं ने आप को एक चटाई पर पाया जिसके और आपके बीच कोई चीज़ नहीं थी (चटाई पर कोईचीज़ नहीं बिछी थी) और आपके सिर के नीचे चमड़े का एक तकिया था जो खजूर के प

Previous article Next article

Articles in the same category

पैगंबर हज़रत मुहम्मद के समर्थन की वेबसाइटIt's a beautiful day