1. सामग्री
  2. अल्लाह के पैग़म्बर मुहम्मद
  3. हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के अ

हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के अ

हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के अल्लाह के पैग़म्बर होने की गवाही देने के तक़ाज़े
१.मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की पैग़म्बरी को सच्चा मानना और यह विश्वास रखना कि वह सर्व मानव जाति के लिए आम (सर्व व्यापी) है। चुनाँचे आप की पैग़म्बरी केवल आप की क़ौम या केवल आप के समय काल तक के लिए सीमित नहीं है, बल्कि यह क़यामत क़ाइम होने तक एक सामान्य (सर्व व्यापी) पैग़म्बरी है, किसी स्थान या किसी समय के साथ विशिष्ट नहीं है, अल्लाह तआला फरमाता हैः

"बहुत बरकत वाला है वह अल्लाह तआला जिस ने अपने बन्दे पर फुरक़ान (यानी कुरआन जो हक़ और बातिल, तौहीद और शिर्क और न्याय और अन्याय के बीच फर्क करने वाला है) उतारा ताकि वह सारे लोगों के लिए आगाह करने वाला -डराने वाला- बन जाए।" (सूरतुल फुर`क़ानः १)
२.पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अल्लाह तआला की ओर से जो बातें पहुँचाते हैं उनमें आप के ग़लतियों से मासूम (पाक) होने का अक़ीदा रखना। क्योंकि अल्लाह तआला फरमाता हैः

"और वह अपनी इच्छा से कोई बात नहीं कहते हैं। वह तो केवल व ईश्वाणी होती है जो उतारी जाती है।" (सूरतुन-नजमः३-४)

किन्तु इसके अतिरिक्त जो अन्य बाक़ी मामले हैं तो आप एक मनुष्य हैं, चुनांचे आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अपने फैसले में इजितहाद करते थे, जैसा कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान हैः
"तुम लोग मेरे पास अपने झगड़े ले कर आते हो, हो सकता है तुम में से कोई अपनी हुज्जत को पेश करने में दूसरे से फसीह और बलीग़  (चर्ब जुबान) हो, सो मैं जो कुछ उस से सुनता हूँ उसके अनुसार उसके हक़ में फैसला दे देता हूँ। अगर मैं किसी को उसके भाई के हक़ से कुछ दे दूँ तो वह उसको न ले, क्योंकि मैं उसे आग का एक टुकड़ा दे रहा हूँ।" (सहीह बुख़ारी और सहीह मुस्लिम)
३.यह अक़ीदा रखना कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम सर्व संसार के लिए रहमत बनाकर भेजे गए हैं, अल्लाह तआल ने फरमायाः

"और हम ने आप को तमाम जहान वालों के लिए रहमत बनाकर भेजा है।" (सूरतुल अम्बियाः १०७)
अल्लाह का फर्मान सच्चा है, आप सच मुच रहमत के पैकर हैं, आप बन्दों को बन्दों की बन्दगी से निकाल कर बन्दों के पालनहार की बन्दगी की ओर ले आए और धर्मों के अत्याचार से निकाल कर इस्लाम के न्याय और दुनिया की तंगी से निकाल कर आखि़रत के विस्तार (कुशादगी) की ओर ला खड़ा किया।
४.इस बात का दृढ़ विश्वास रखना कि मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम सारे पैग़म्बरों में सर्वश्रेष्ठ, उनके समाप्त कर्ता (मुद्रिका) और अंतिम पैग़म्बर हैं, आप के बाद कोई ईश्दूत और पैग़म्बर नहीं है, इसलिए कि अल्लाह तआला का फरमान हैः


" लोगो! मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम तुम्हारे मर्दों में से किसी के बाप नहीं, किन्तु आप अल्लाह के पैग़म्बर और तमाम नबियों के समाप्त कर्ता (मुद्रिका) हैं।" (सूरतुल अहज़ाबः ४०)
तथा आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः
"मुझे छः चीज़ो के द्वारा अन्य पैग़म्बरों पर श्रेष्ठता दी गई हैः मुझे 'जवामिउल-कलिम' (यानी कम शब्दों में बहुत अधिक अर्थ वाली बात कहने की योग्यता) दी गई है, रोब-दाब( धाक) के द्वारा मेरी सहायता की गई है, मेरे लिए ग़नीमत का माल (लड़ाई में दुमनों से प्राप्त होने वाला धन) हलाल कर दिया गया है, पूरी धरती को मेरे लिए सजदा करने नमाज़ पढ़ने का स्थान और पवित्र् बना दिया गया है, मुझे सर्व संसार के लोगों के लिए पैग़म्बर बनाकर भेजा गया है और मुझ पर ईश्दूतों की कड़ी को समाप्त कर दिया गया है।" (सहीह मुस्लिम)
५.इस बात पर पक्का विश्वास रखना कि इस्लाम धर्म मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के द्वारा सम्पूर्ण और सम्पन्न हो चुका है, इसलिए उसमें कुछ बढ़ाने या घटाने की कोई सांस (गुंजाइश) नहीं है, अल्लाह तआला का फरमान है:


"आज मैं ने तुम्हारे लिए तुम्हारे दीन को मुकम्मल कर दिया और तुम पर अपनी नेमत –अनुकम्पा- भर पूर कर दी और तुम्हारे लिए इस्लाम धर्म को पसंद कर लिया।"(सूरतुल-माइदाः३) इस्लाम के सम्पूर्ण धर्म होने का मुशाहदा (अवलोकन) इस बात से होता है कि इस्लाम जीवन के सभी राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और अखलाक़ी गोशों को सम्मिलित है, वह धर्म और राज्य दोनों का संगम है जितना कि यह शब्द अपने अंदर अर्थ रखता है। अंग्रेज़ विचारक क्वेलिम (kwelem) अपनी किताब 'इस्लामी अक़ीदा' (प॰११९"१२०) में इस संबंध में कहता हैः॑
"क़ुरआन के आदेश धार्मिक और व्यवहारिक कर्तव्यों तक ही सीमित नहीं हैं... बल्कि वह इस्लामी जगत के लिए एक सामान्य और सर्व व्यापी क़ानून है, और वह ऎसा क़ानून है जो शहरी, व्यापारिक, जंगी, न्यायिक, फौजदारी और दण्ड से संबंधित क़ानूनों को सम्मिलित है, फिर वह एक धार्मिक क़ानून है जिसकी धुरी पर धार्मिक मामलों से लेकर दुनियावी मामले तक, जान की सुरक्षा से ले कर शरीर की सुरक्षा तक, प्रजा के हुक़ूक़ से लेकर हर व्यक्ति के हुक़ूक़ तक, मनुष्य के निजी लाभ से लेकर सामाजिक संस्था के लाभ तक, प्रतिष्ठा से लेकर पाप तक और इस दुनिया में कि़सास (खून का बदला) से लेकर आखिरत में कि़सास तक के सारे मामले उसी धार्मिक क़ानून की धुरी पर घूमते हैं ... इस प्रकार क़ुरआन भौतिक रूप से ईसाइयों की उन पवित्र किताबों से विभिन्न है जिन में धर्म के सिद्धांत और नियम नाम की कोई चीज़ नहीं है, बल्कि वह प्रायः कहानियों, खुराफात (मिथ्यावाद) और उपासना से संबंधित मामलों में अति उन्माद का संमिश्रण है... वह अनुचित( तर्कहीन) और प्रभाव हीन है।"
यह दृढ़ विवास रखना कि पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को अल्लाह तआला की ओर से जो अमानत सौंपी गई थी आप ने उसको अदा कर दिया, उसके संदेश को पहुँचा दिया और अपनी उम्मत की भलाई और कल्याण के इच्छुक रहे। चुनांचे जो भी भलाई और कल्याण की चीज़ थी उसे बतला दिया और उसको अपनाने का आदेश दिया, और जो भी बुराई थी उससे डराया और मना किया, जैसा कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपने अंतिम हज्ज के अवसर पर हज़ारों लोगों के समूह को सम्बोधित करते हुए फरमायाः "क्या मैं ने दीन को पहुँचा दिया?" सब ने कहाः हाँ, (आप ने दीन की तब`लीग़ कर दी।) इस पर आप ने कहाः "ऎ अल्लाह तू गवाह रह।" (सहीह बुख़ारी और सहीह मुस्लिम)
६.यह विश्वास रखना कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पैग़म्बर बनाए जाने के बाद अल्लाह के पास केवल वही शरीअत (धर्म-शास्त्र) स्वीकार की जाएगी जो शरीअत आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर उतारी गई है, इसलिए आप की शरीअत को छोड़ कर किसी दूसरी शरीअत के द्वारा अल्लाह की उपासना नहीं की जायेगी, और इसके सिवा कोई अन्य शरीअत अल्लाह तआला हरगिज़ क़बूल नहीं करेगा, और इनसान का हिसाब और किताब इसी शरीअत के आधार पर होगा। अल्लाह तआला का फर्मान हैः

 

"और जो व्यक्ति इस्लाम के सिवा कोई अन्य धर्म ढूँढेगा, तो वह (धर्म) उस से स्वीकार नहीं किया जायेगा, और आखिरत में वह घाटा उठाने वालों में से होगा।"(सूरत आल-इम्रानः८५)
और पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः "उस ज़ात की क़सम जिसके हाथ में मुहम्मद की जान है, इस उम्मत का जो भी आदमी चाहे यहूदी हो या ईसाई मेरे बारे में सुने, फिर भी उस शरीअत पर ईमान न लाए जो मैं देकर भेजा गया हूँ तो वह अवश्य जहन्नमियों में से है।" (सहीह मुस्लिम)
७.आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की इताअत और फरमांबरदारी करना, इसलिए कि अल्लाह तआला ने फरमाया हैः


"जो आदमी अल्लाह और उसके रसूल की फरमांबरदारी करता है, वह उन लोगों के साथ होगा जिन पर अल्लाह तआला ने इनआम किया है जैसे कि पैग़म्बरों, सिद्दीक़ों, शहीदों और सदाचारियों के साथ, और उनकी संगत बहुत अच्छी है।"(सूरतुन-निसाः६९)
आप की इताअत और फरमांबरदारी यह है कि आपके आदेश का पालन किया जाए और जिन चीजों से आप ने मनाही की है उन से बचा जाए, जैसाकि अल्लाह तआला का फरमान है,
 

"और पैगंबर जो कुछ तुम्हे दें ,उसे ले लो और जिन चीजों से तुम्हे रोक दें , उनसे रुक जाओ!"(सूरतुल-हश्र:७)
और अल्लाह तआला ने यह भी स्पष्ट कर दिया है की पैगंबर  सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की बात न मानने पर क्या परिणाम सामने आता है,चुनांचे फ़रमाया :

 "जो आदमी अल्लाह और उसके पैग़म्बर की नाफरमानी करेगा और उसकी सीमाओं से आगे बढ़ेगा तो अल्लाह तआला उसे (जहन्नम की )आग में दाखिल कर देगा जिस में वह हमेशा रहेगा और उसके लिए अपमानजनक अज़ाब होगा।"(सूरतुन-निसाः१४)

८.आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के फैसले से प्रसन्न होना और जो कुछ आप ने धार्मिक नियम और सुन्नत घोषित किया है उस पर कोई आपत्तिा व्यक्त न करना, जैसाकि अल्लाह तआला का फर्मान हैः

"तेरे रब (पालनहार) की क़सम! यह लोग उस समय तक पक्के मोमिन नहीं हो सकते जब तक कि आप को अपने आपसी विवादों में हकम (फैसला करने वाला) न मान लें, फिर आप उनके बीच जो फैसला कर दें उसके बारे में अपने दिलों में कोई तंगी न महसूस करें और उसे पूरी तरह स्वीकार कर लें।" (सूरतुन-निसाः६५) इसी प्रकार आप की शरीअत और आप के फैसले को इसके सिवा दूसरी शरीअतों, फैसलों, नियमों और सिद्धांतों पर प्रधानता दी जाए, इस लिए कि अल्लाह तआला का फरमान हैः


"क्या यह लोग फिर से जाहिलियत का फैसला चाहते हैं, विश्वास रखने वाले लोगों के लिए अल्लाह तआला से बेहतर फैसले करने वाला कौन हो सकता है?"(सूरतुल माईदाः५०)
९.पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सुन्नत (पद्धति, तरीक़ा) की पैरवी करना, इसका प्रमाण अल्लाह तआला का यह फरमान हैः

"कह दीजिए अगर तुम अल्लाह तआला से महब्बत रखते हो तो मेरी पैरवी (अनुसरण) करो, स्वयं अल्लाह तआला तुम से महब्बत करेगा और तुम्हारे गुनाह माफ कर देगा और अल्लाह तआला बड़ा माफ करने वाला और बहुत मेहरबान (दयालु)है।
(सूरत आल इम्रानः३१)
                                
तथा आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के  नक्शे क़दम की पैरवी करना, आपके तरीक़े पर चलना और आपको क़ाबिले तक़्लीद (अनुसरण योग्य )नमूना (आदर्श) बनाना, इस बारे में अल्लाह तआला फरमाता हैः


"निःसंदेह तुम्हारे लिए पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम में बेहतरीन नमूना (उत्ताम आदर्श) है, हर उस आदमी के लिए जो अल्लाह तआला और कि़यामत के दिन की आशा रखता है और अधिकाधिक अल्लाह तआला को याद (जि़क्र) करता है।"
                                (सूरतुल-अहज़ाबः २१)  
पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की पैरवी और अनुसरण का लाज़मी (अनिवार्य) तक़ाज़ा यह है कि आप की सीरते-पाक यानी जीवनी की जानकारी प्राप्त की जाए और उसका अध्ययन किया जाए, ताकि उसके आधार पर आपका अनुसरण और ताबेदारी हो सके।
ज़ैनुल-आबदीन यानी अली बिन हुसैन बिन अली बिन अबी तालिब कहते हैं: हमें पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के मग़ाज़ी (पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने स्वयं या अपनी किसी फौज के द्वारा काफिरों से जंगें लड़ीं उन्हें मग़ाज़ी कहा जाता है) की शिक्षा दी जाती थी जिस प्रकार कि हमें क़ुरआन की सूरतों को पढ़ाया जाता था। (इब्ने कसीर की किताबः अल"बिदाया वन्निहाया ३/२४२) और मग़ाज़ी पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की जीवनी का एक भाग है।
१०. पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को उस स्थान और पद पर रखना जो अल्लाह तआला ने आप को प्रदान किया है, उसमें किसी प्रकार की अतिशयोक्ति और सीमा को पार न किया जाए और न ही उसमें कमी, उजडपन और अन्याय से काम लिया जाए, इसलिए कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फर्मान हैः
"मेरी बढ़ा चढ़ाकर तारीफ कर के मुझे हद से आगे न बढ़ाओ जिस प्रकार कि ईसाईयों ने ईसा बिन मर्यम को हद से आगे बढ़ा दिया (यहाँ तक कि उनको अल्लाह का बेटा बना डाला) मैं केवल उसका बन्दा और दास हूँ, इसलिए मुझे अल्लाह का बन्दा और उस का पैग़म्बर कहो।" (सहीह बुख़ारी)
११. जब पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का नाम आये तो आप के लिये प्रार्थना करना यानी आप पर दरूद व सलाम भेजना, इस लिए कि अल्लाह तआला का फर्मान हैः

"निःसंदेह अल्लाह तआला और उसके फरिश्ते पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर दुरूद भेजते हैं, ऎ ईमान वालो! तुम भी उन पर दुरूद भेजो और खूब सलाम भेजते रहा करो"।(सूरतुल-अहज़ाबः ५६)
और इसलिए भी कि पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया हैः "असली कंजूस वह आदमी है जिसके पास मेरा नाम आए और वह मुझ पर दुरूद न भेजे।"(सुनन र्तिमिज़ी)
१२.पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से महब्बत करना, आप का आदर और सम्मान करना और आप की महब्बत पर हर प्रकार की महब्बत को क़ुर्बान कर देना, इसलिए कि सच्चा धर्म 'इस्लाम', जिस के स्वीकारने में लोक और परलोक का सौभाग्य और कामयाबी है, उसकी ओर मार्ग दर्शाने में अल्लाह तआला के बाद आप ही का फज़्ल और एहसान है। अल्लाह तआला फरमाता हैः

"आप कह दीजिए कि अगर तुम्हारे बाप और तुम्हारे लड़के और तुम्हारे भाई और तुम्हारी बीवियाँ और तुम्हारे कुंबे-क़बीले और तुम्हारे कमाए हुए धन और वह तिजारत जिसके मंदा होन से तुम डरते हो और वह हवेलियाँ जिन्हें तुम पसंद करते हो - अगर ये सब तुम्हें अल्लाह से और उसके पैग़म्बर से और उसके रास्ते में जिहाद से भी अिधक प्यारे हैं, तो तुम प्रतीक्षा करो कि अल्लाह तआला अपना अज़ाब ले आए। अल्लाह तआला फासिक़ों को हिदायत नहीं देता।" (सूरतुत-तौबाः२४)
पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से महब्बत करने का क्या परिणाम सामने आता है, आप ने एक आदमी के प्रश्न का उत्तर देते हुए जिसने आप से पूछा था कि ऎ अल्लाह के पैग़म्बर ! क़यामत कब आएगी? फरमायाः "तुम ने उसके लिए क्या तैयारी की है?" इस पर गोया वह आदमी ढीला पड़ गया फिर उसने कहाः ऎ अल्लाह के पैग़म्बर ! मैं ने उसके लिए बहुत अधिक रोज़ा, नमाज़ और ख़ैरात के द्वारा तैयारी तो नहीं की है, किन्तु मैं अल्लाह और उसके पैग़म्बर से महब्बत करता हूँ। पैग़म्बर सल्लल्लाहु अ

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