1. सामग्री
  2. अल्लाह के पैग़म्बर मुहम्मद
  3. हज़रत पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के 

हज़रत पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के 

हज़रत पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के ईशदूत और संदेशवाहक होने की सत्यता पर कुछ अकली तर्क (पहला भाग)

१.पैग़म्बर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अनपढ़ थे, लिखना और पढ़ना नहीं जानते थे और ऎसी क़ौम में थे जो अनपढ़ थी,उसमें लिखना-पढ़ना बहुत ही कम लोग जानते   थे। और यह केवल इस कारण था ताकि कोई संदेह करने वाला उस वह्य में संदेह न कर सके जो आप पर अल्लाह की ओर से उतरती थी, और झूठ मूट यह न गुमान कर बैठे कि उसे आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपनी ओर से संपादन कर (गढ़) के पेश कर दिया है। अल्लाह तआला ने फरमायाः

"इस से पहले तो आप कोई किताब पढ़ते न थे और नकिसी किताब को अपने हाथ से लिखते थे कि यह मिथ्यावादी लोग संदेह में पड़ते।" (सूरतुल-अनकबूतः ४८)                 
आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने ऎसी चीज़ पेश की जिसने अरब को उसके समान कोई चीज़ पेश करने से विवश और बेबस कर दिया और अपनी फसाहत व बलागत (लाटिका) से उन्हें चकित कर दिया। इस प्रकार  आपका अनश्वर चमत्कार वह क़ुरआन है जो आप पर अवतरित हुआ है। पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम फरमाते हैं:
"पैग़म्बरों में से प्रत्येक पैग़म्बर को कुछ न कुछ निशानी (चमत्कार) दी गई थी जिस पर लोग ईमान लाये, और मुझे जो चमत्कार (निशानी) दिया गया है वो वह्य     है  जिसे अल्लाह  तआला ने मेरे ऊपर उतारी है, और मुझे आशा है कि कि़यामत के दिन मेरे मानने वाले सब से अधिक होंगे।" (सहीह बुख़ारी एवं सहीह मुस्लिम)
आपकी क़ौम के लोग अरबी भाषा के माहिर और निपुण और फसाहत से पूर्ण थे किन्तु फिर भी अल्लाह तआला ने उन्हें क़ुरआन के समान कोई चीज़ प्रस्तुत करने के लिए चैलेंज किया तो वह बेबस हो गये, फिर उन्हें क़ुरआन के समान एक सूरत अध्याय प्रस्तुत करने के लिए चैलेंज किया फिर भी वह असमर्थ रहे। अल्लाह तआला ने   फरमायाः

"हम ने जो कुछ अपने बन्दे पर उतारा है उस में अगर तुम्हें  संदेह हो और तुम सच्चे हो तो उस जैसी एक सूरत तो बना लाओ, तुम्हें  अधिकार है कि अल्लाह के अतिरिक्त अपने सहयोगियों को भी बुला लो।" (सूरतुल-बक़राः २३)

बल्कि सर्व संसार के लोगों को चैलेंज किया, अल्लाह तआला ने फरमायाः


"कह दीजिये कि अगर तमाम इन्सान और सारे जिन्नात मिल कर इस क़ुरआन के समान लाना चाहें तो उन सब के लिए इसके समान लाना असंभव है चाहे वह आपस में एक दूसरे के लिए सहयोगी भी बन जायें।" (सूरतुल इस्राः८८)

२. पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम निरंतर लोगों को अल्लाह की ओर बुलाते और आमंत्रण देते रहे जबकि आप को अपनी क़ौम की ओर से बहुत अधिक कठिनाईयों और टकरावों का सामना हुआ, यहाँ तक कि वो लोग आप को जान से मार डालने और आपकी दावत का अंत कर देने के लिए आप के विरूद्ध षड्यंत्रण करने की हद तक पहुँच गये। इन सारी चीज़ों के होते हुए भी आप निरंतर उस दीन के प्रचार में जुटे रहे जिसके साथ आप को भेजा गया था और अल्लाह के दीन को फैलाने के रास्ते में आप को अपनी क़ौम की ओर से जिस कष्ट, परेशानी, कठिनाई और अत्याचार का भी सामना हुआ उस पर धैर्य करते रहे। अगर आप मिथ्यावादी होते -और आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम कदापि ऎसा नहीं थे- तो आप धर्म प्रचार को त्याग देते और अपनी जान जोखों में न डालते; इस लिए कि आप देख रहे थे कि आप की पूरी क़ौम आपके विरूद्ध एक जुट हो गई है और आप का और आप की दावत का अंत करने के लिए गंभीरता का प्रदर्शन कर रही है।
डा. एम. एच. दुर्रानी (m.h. durrani ) कहते हैं :
"यह विश्वास, यह तीव्र प्रयास और यह दृढ़ता और पक्का संकल्प  जिसके द्वारा मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपने आन्दोलन का अंतिम सफलता  तक नेतृत्व किया, इस बात का प्रबल प्रमाण है कि आप अपनी दावत में क़तई सच्चे थे, क्योंकि अगर आप के मन में तनिक भी संदेह या व्याकुलता होती तो आप उस आँधी तूफान के सामने कभी टिक नहीं पाते जिसके शोले पूरे बीस साल तक भड़कते रहे। क्या इसके बाद उद्देश्य में पूर्ण सच्चाई, व्यवहार में दृढ़ता (सदव्यवहार) और मन की सवोर्च्चता का कोई और प्रमाण हो सकता है? यह सारे अस्बाब व अवामिल कारण अनिवार्य रूप से इस परिणाम-निष्कर्ष- तक पहुँचाते हैं जिसे स्वीकारने बिना कोई छुटकारा नहीं कि यह व्यक्ति अल्लाह का सच्चा संदेश्वाहक (पैग़म्बर) है, यह हमारे पैग़म्बर मुहम्मद  सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हैं। आप अपने अनुपम गुणों में एक चिन्ह, प्रतिष्ठा और अच्छाई व भलाई के पूर्ण आदर्श और सच्चाई एवं निःस्वाथर्ता की अलामत पहचान थे। आप का जीवन, आपके विचार, आप की सच्चाई, आपकी धर्म निष्ठता, आपका संयम, आपकी सखावत व दानशीलता, आप का विश्वास एवं श्रद्धा और आपके कारनामे यह सब के सब आप की नुबुव्वत (ईश्दूतत्व) के अद्वितीय प्रमाण हैं। जो व्यक्ति भी निष्पक्षता के साथ आप के जीवन और संदेश को पढ़ेगा, वह इस बात की गवाही देगा कि वाक़ई आप अल्लाह के भेजे हुए पैग़म्बर हैं, और क़ुरअन  जिसे आप लोगों के लिए लेकर आये हैं, वह अल्लाह की सच्ची किताब है। प्रत्येक गंभीर, न्याय प्रिय विचारक जो सत्य का इच्छुक है वह अवश्य इस निर्णय तक पहुँचेगा।"
३.यह बात  स्पष्ट है कि प्रत्येक मनुष्य स्वभाविक रूप से इस सांसारिक जीवन के उपकरणों जैसे माल-धन, खाने-पीने की चीज़ें और शादी-विवाह को पसंद करता है। अल्लाह तआला ने  फरमायाः

 

"इच्छित चीज़ों की रूचि लोगों के लिए सुंदर बना दी गई है, जैस स्त्रियाँ और बेटे और सोने और चाँदी के इकटठा किये हुए खज़ाने और चिन्ह वाले घोड़े और चौपाये और खेती, यह    सांसारिक जीवन का  सामान है और लौटने का अच्छा ठिकाना तो अल्लाह तआला ही के पास है।"(सूरा आल-इम्रानः१४)

मनुष्य इन उपकरणों को विभिन्न साधनों और तरीक़ों से प्राप्त करने के लिए भरपूर प्रयास करता है। किन्तू उन्हें प्राप्त करने के ढंग और तरीक़े में लोग विभिन्न हैं, कुछ लोग उन्हें उचित (धर्मसम्मत) साधन से कमाते हैं और कुछ लोग अनुचित और अवैध ढंग से कमाते हैं।
जब हम ने यह जान लिया, तो हम कहते हैं कि जब पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपनी दावत का आरंभ किया तो आप की क़ौम ने आप से मोल-भाव किया और सारी लुभाने वाली चीज़ों और सांसारिक उपकरणों के द्वारा आप को उकसाया और आप की समस्त इच्छाओं और मांगों को पूरा करने का वादा किया; अगर आप सरदारी चाहते हैं तो वह आप को सरदार बना लेंगे, और अगर विवाह करना चाहते हैं तो सब से सुंदर स्त्रीसे आप का विवाह कर देंगे और अगर आप धन-दौलत चाहते हैं तो वह भी देने के लिए तैयार हैं, केवल एक शर्त मान लें कि इस नये धर्म को और उसकी ओर लोगों को बुलाना छोड़ दें। इस पर आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने ईश्वरीय निर्देश से प्राप्त विवास के साथ उन्हें उत्तार दियाः
"अल्लाह की क़सम! अगर ये लोग सूर्य को मेरे दाहिने हाथ में और चाँद को बायें हाथ में रख दें और यह चाहें कि मैं इस मामले को छोड़ दूँ तो मैं इसे नहीं छोड़ सकता यहाँ तक कि अल्लाह तआला इस को प्रभुत्व प्रदान कर दे, या इस के लिए मेरी जान चली जाये।" (सीरत इब्ने हिाशम २/१०१) यदि आप मिथ्यावादी होते -और आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम कदापि ऎसा नहीं थे- तो इस सौदा मोल-भाव को स्वीकार कर लेते और इस अवसर का भरपूर लाभ उठाते; क्योंकि आप के सामने जो कुछ पेश किया गया था, वह हर उस व्यक्ति की सबसे श्रेष्ठ इच्छा होती है जिसका लक्ष्य दुनिया होता है।
डॉ एम एच दुर्रानी  (dr.m.h.durrani) कहते हैं :
"पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने निरंतर तेरा साल मक्का में और निरंतर आठ साल मदीना में कठिनाईयाँ और परेशानियाँ झेलीं, पर आप अपने दृष्टि-कोण से एक बाल भी नहीं हटे, आप पक्के इरादे वाले, निडर एवं बहादुर और अपने लक्ष्यों और दृष्टि-कोण में दृढ़ और पक्के थे। आप के समुदाय ने आप के सामने यह प्रस्ताव रखा कि यदि आप अपने धर्म की ओर बुलाने और अपने संदेश को फैलाने से रूक जायें तो वह आप को अपना राजा बना लेंगे और देश का सारा धन-दौलत आपके पैरों में डाल देंगे। परन्तु आप ने इन सारे बहलावों और फुसलावों को नकार दिया और उनके स्थान पर अपनी दावत (निमंत्रण) के लिए कठिनाईयों को झेलना पसंद कर लिया। आप ने ऎसा क्यों किया? आप ने कभी धन-दौलत, पद, राज्य, वैभव, विश्राम, आराम, सुख-चैन और संपन्नता और खुशहाली की परवाह क्यों नहीं की? यदि कोई आदमी इसका उत्तार जानना चाहता है तो उसके लिए आवश्यक है कि वह इस बारे में बड़ी गहराई से सोच विचार करे।"
४.यह बात सुप्रसिद्ध और मुशाहिदे में है कि जो व्यक्ति भी किसी राज्य का शासन या नेतृत्व संभालता है तो उसके शासन के अधीन सारा धन दौलत और प्रजा उसके अधिकार में होती है और उसकी सेवा के लिए नियुक्त होती है। किन्तु जहाँ तक मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का संबंध है तो आप जानते थे कि यह दुनिया स्थायी और सदा रहने वाला आवास नहीं है। इब्राहीम बिन अलक़मा से रिवायत है कि अब्दुल्लाह ने कहा किः पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम एक (नंगी) चटाई पर लेटे हुये थे जिस से आप के शरीर (चमड़ी) पर निाशन पड़ गये थे। यह देख कर मैं ने कहाः ऎ अल्लाह के पैग़म्बर! मेरे माता पिता आप पर क़ुर्बान! अगर आप हमें आज्ञा देते तो हम इस पर आप के लिए कोई बिछौना बिछा देते जिस से आप के शरीर की सुरक्षा होती। इस पर अल्लाह के पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः "मुझे दुनिया से क्या लेना देना, मेरा और दुनिया का उदाहरण एक सवार की तरह है जिसने एक पेड़ के नीचे आराम किया फिर उसे छोड़ कर प्रस्थान कर गया।" (सुनन र्तिमिज़ी)
और आप के बारे में नोमान बिन बशीर रजि़यल्लाहु अन्हु कहते हैं: मैं ने तुम्हारे पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को देखा है कि एक समय आप अपना पेट भरने के लिए रद्दी खजूर भी नहीं पाते थे। (मुस्लिम)
अबू हुरैरा रजि़यल्लाहु अन्हु कहते हैं: मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के घराने वालों ने लगातार तीन दिन तक पेट भर कर खाना नहीं खाया यहाँ तक कि आप का स्वर्गवास हो गया। (सहीह बुख़ारी व सहीह मुस्लिम)
जब कि अरब द्वीप आपके शासन अधीन था और मुसलमानों को प्राप्त होने वाली प्रत्येक भलाई और कल्याण के कारण आप ही थे। फिर भी कुछ समय आप के पास पर्याप्त खाना नहीं रहता था। आपकी पत्नी आइशा रजि़यल्लाहु अन्हा कहती हैं : पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कुछ समय के लिए (उधार पर) एक यहूदी से खाद्दान्न खरीदा और अपनी कवच (जि़रह) को उसके पास गिरवी रख दी। (सहीह बुख़ारी)
इस का यह अर्थ नहीं है कि आप जो चीज़ चाहते थे, उसे प्राप्त करना आप के बस की बात नहीं थी। क्यों कि मस्जिदे नबवी में धन-दौलत के ढेर के ढेर आप के सामने रखे जाते थे और उस समय तक आप अपने स्थान से नहीं उठते थे और न आप को चैन आता था जब तक कि आप उसे गरीबों और धनहीन लोगों को बांट नहीं देते थे। यही नहीं बल्कि आप के साथियों में बड़े-बड़े धन-दौलत और पूंजी वाले लोग थे और आप की सेवा के लिए एक दूसरे से आगे बढ़ने का प्रयास करते थे, और आप के लिए (सब कुछ) बहुमूल्य से बहुमूल्य चीज़ों को निछावर कर देते थे। किन्तु पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम दुनिया की वास्तविकता को जानते थे। आप का फरमान हैः
"अल्लाह की क़सम आखि़रत के सामने दुनिया की वास्तविकता ऎसे ही है जैसे कि तुम में से कोई आदमी अपनी इस अंगुली -आप  ने शहादत की अंगुली की ओर संकेत किया- को समुद्र में डाल कर देखे कि उस में कितना पानी आता है।" (सहीह मुस्लिम)
लेडी इ॰ कोबोल्ड (lady e.cobold) अपनी पुस्तक 'मक्का का हज्ज' (लन्दन १९३४) में कहती हैः
जबकि मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अरब द्वीप के नायक थे... पर उन्होंने उपाधियों के बारे में नहीं सोचा, और न ही उस से लाभ उठाने का प्रयास किया, बल्कि इस बात पर निर्भर करते हुए अपनी हालत पर बाक़ी रहे कि वह अल्लाह के पैग़म्बर हैं और मुसलमानों के सेवक हैं। वह स्वयं ही अपने घर की सफाई करते थे और अपने हाथ से अपने जूते की मरम्मत करते थे। दयालु, दानशील और सदाचारी थे जैसे कि वह बहने वाली हवा हों। कोई फक़ीर या भिखारी आप के पास आता तो जो कुछ आप के पास होता उसे प्रदान कर देते थे, और अधिकांश समय आप के पास थोड़ा ही होता था जो उसके लिए पर्याप्त नहीं होता था।"
५. पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को कुछ ऎसे दुर्लभ घटनाओं का सामना होता था जिन के स्पष्टीकरण की आवश्यकता होती थी, किन्तू उसके वि्षाय में आप पर वह्य (ईश्वाणी) न उतरने के कारण आप उसके संबंध में कुछ नहीं कर पाते थे। इसलिए वह्य उतरने से पहले की अवधि को आप दुःख, चिन्ता और शोक की अवस्था में बिताते थे। इसी में से एक इफ्फक  की घटना है जिस में पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के सतीत्व पर आरोप लगाया गया। चुनांचे आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम एक महीना तक इस स्थिति में ठहरे रहे कि आप के दुश्मन आप के बारे में अनुचित बातें करते रहे, आपके सतीत्व को निशाना बनाते रहे, यहाँ तक कि वह्य उतरी जिस ने आपकी पत्नी (आइशा रजि़यल्लाहु अन्हा) को उस आरोप से मुक्त और पवित्र घोषित कर   दिया जिस से उन को आरोपित किया गया था। यदि आप मिथ्यावादी होते -और आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम कदापि ऎसा नहीं थे- तो इस समस्या का उसी समय समाधान कर देते, किन्तु वास्तविकता यह थी कि आप अपनी इच्छा से कोई बात नहीं कहते थे।
६.  पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपने लिए मानव जाति से बढ़ कर किसी पद का दावा नहींकिया। आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम यह बात पसंद नहीं करते थे कि आप के साथ कोई ऎसा व्यवहार किया जाए जो प्रतिष्ठा और महानता का प्रतीक हो। अनस रजि़यल्लाहु अन्हु कहते हैं: सहाबा के निकट पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से अधिक प्रिय कोई और नहीं था। तथा उन्होंने कहाः और जब वह लोग आप को देखते तो आप के लिए खड़े नहीं होते थे; इसलिए की वह जानते थे कि आप इस से घृणा करते हैं। (सुनन र्तिमिज़ी)
वाशिंगटन इरविंग  (w.irving) कहता हैः
"पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की फौजी सफलताओं ने उनके अंदर अभिमान, र्गव एंव घमण्ड नहीं पैदा किया। वह केवल इ

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