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  2. अल्लाह के पैग़म्बर मुहम्मद
  3. हज़रत पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के 

हज़रत पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के 

हज़रत पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के कुछ शिष्टाचार (आदाबे जि़ंदगी)

१. पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपने साथियों से निकट और मिल जुल कर रहते थे।इसकी पुष्टि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के जीवन के तमामविभागों और आप के सारे निजी और सामान्य मामलों की पूरी जानकारी प्राप्त करने सेहोती है। इस लिए कि पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ही वह आदर्श और नमूना हैं जिनकी तमाम मामलों में पैरवी और अनुसरण करना चाहिए। जरीर बिन अब्दुल्लाहरजि़यल्लाहु अन्हु कहते हैं: जब से मैं इस्लाम लाया हूँ पैग़म्बर सल्लल्लाहुअलैहि व सल्लम ने मुझे अपने पास आने से नहीं रोका, और जब भी मुझे देखा तो मुसकुरादिया, मैं ने आप से शिकायत की कि मैं घोड़े पर स्थिर नहीं रह पाता हूँ तो आप नेअपने हाथ से मेरे सीने पर मारा और यह दुआ कीः॑॑

"ऎ अल्लाह तू इसे स्थिर कर दे और इसेमार्ग दर्शाने वाला और मार्ग दर्शाया हुआ बना।" (सहीह बुख़ारी और सहीहमुस्लिम)

पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अपने साथियों के साथ हंसी-मज़ाक़ औरचुहल किया करते थे, अनस बिन मालिक रजि़यल्लाहु अन्हु कहते हैं किः   पैग़म्बरसल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम लोगों में सब से अच्छे अख्लाक़ वाले थे, मेरा एक भाई थाजिसे अबू-उमैर कहा जाता था, (हदीस के बयान करने वाले) कहते हैं: मेरा ख्याल है कि अनसने कहा कि वह छोटे थे, अनस कहते हैं: जब पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम आतेऔर उनको देखते तो कहतेः "ऎ अबू-उमैर, तुम्हारी चिडि़या क्या हुई।" वह कहते हैं इसतरह आप उनके साथ खेलते थे। (सहीह बुख़ारीऔर सहीह मुस्लिम)

 

आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की हँसी-मज़ाक केवल बात चीत पर बस नहीं थी बल्कि आप अपने साथियों के साथ अमलीतौर पर (क्रियात्मक रूप से) हँसी-मज़ाक और चुहल किया करते थे। अनस बिन मालिक-रजि़यल्लाहु अन्हु कहते हैं कि एक देहाती आदमी जिस का नाम ज़ाहिर बिन हराम थापैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को उपहार (तोहफा) दिया करता था, जब वह वापस जाना चाहता तो पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम उसके लिए कोई चीज़ तैयार करते थे। पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उनके बारे में कहाः "ज़ाहिर हमारे देहातीऔर हम उनके शहरी (साथी) हैं।" अनस कहते हैं, एक दिन वह अपना सामान बेच रहे थे किपैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम आये और उनके पीछे से उन्हें पकड़ लिया और वहआप को देख नहीं पा रहे थे। चुनाँचे उन्हों ने कहाः यह कौन है?  मुझे छोड़ दे। आप नेअपना चेहरा उनकी ओर किया, जब वह पहचान गए कि यह पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हैं तो अपनी पीठ को आपके सीने से चिपकाने लगे। पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम ने फरमायाः "यह ग़ुलाम कौन खरीदेगा?" ज़ाहिर ने कहाः ऎ अल्लाह केपैग़म्बर आप मुझे सस्ता पाएंगे। आप ने फरमायाः "किन्तु तुम अल्लाह के निकट सस्ते नहीं हो" या पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने यह फरमाया कि "तुम अल्लाह केपास बहुमूल्य हो।" (सहीह इब्नेहिब्बान)

२.अपने साथियों से परामशर करनाः जिनचीज़ों के विषाय में कोई नस (यानी अल्लाह की ओर से कोई स्पष्ट प्रमाण) नहीं होताथा, पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम उन तमाम मामलों में अपने साथियों से सलाह-मशवरा (परामशर) किया करते थे और उनके विचार को स्वीकार करते थे। अबू हुरैरारजि़यल्लाहु अन्हु कहते हैं: मैं ने अल्लाह के पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लमसे बढ़ कर किसी को भी अपने साथियों से सलाह-मशवरा करते हुए नहीं देखा। (सुननतिरमिज़ी)

३. बीमार की तीमार दारी करना चाहे वह मुसलमान हो या काफिरःपैग़म्बरसल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अपने साथियों के बारे में पूछते और उनकी ख़बरगीरी कियाकरते थे। अगर आप को बताया जाता कि कोई बीमार है तो आप और आपके पास उपस्थित सहाबाउसकी तीमार दारी के लिए दौड़ पड़ते थे। आप केवल मुसलमान बीमारों की ही तीमार दारीनहीं करते थे बल्कि उनके अतिरिक्त दूसरे लोगों की भी तीमार दारी किया करते थे। अनसरजि़यल्लाहु अन्हु कहते हैं : एक यहूदी बच्चा पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लमकी सेवा किया करता था, वह बीमार पड़ गया तो पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लमउसकी तीमार दारी करने के लिए गये, उसके सिर के पास आप बैठ गये और उस से कहाः "तूइस्लाम ले आ" उसने अपने पास बैठ हुए अपने बाप की ओर देखा, तो उसके बाप ने कहाःअबुल-क़ासिम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की बात मान ले, चुनांचे वह       मुसलमान हो गया, फिर आप वहाँ से यह कहते हुए निकलेः "सभी तारीफ अल्लाह के लिए है जिस ने उसे आग सेबचा लिया।"(सहीह बुख़ारी)

४. पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम भलाई का शुक्रियाअदा करते थे और उसका अच्छा बदला देते थे :आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का फर्मानहैः "अगर कोई तुम से अल्लाह के वास्ते पनाह मांगे तो उसे पनाह दे दिया करो, और जोतुम से अल्लाह के नाम से कोई चीज़ मांगे तो उसे प्रदान कर दिया करो, और जो तुम्हेंआमंत्र्ण दे उसके आमंत्र्ण को स्वीकार करो, और जो तुम्हारे साथ कोई भलाई करे तोउसका बदला दो, अगर तुम्हारे पास उस को बदला देने के लिए कोई चीज़ न हो तो उसके लिएदुआ करो यहाँ तक कि तुम जान लो कि तुम ने उसका बदला पूरा कर दिया।" (सुनन अबूदाऊद)

आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की बीवी आइशा रजि़यल्लाहु अन्हा आप के   बारे   मेंफरमाती हैं: अल्लाह के पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम तोहफा स्वीकार करते   थेऔर उसका बदला भी देते थे। (सहीह बुख़ारी)

यानी बदले में आप भी तोहफा देते थे।

५.पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हर सुंदर और बढि़या चीज़ को पसंद करते थेःअनसरजि़यल्लाहु अन्हु कहते हैं: मैं ने कोई हरीर और दीबा नहीं छुआ जो पैग़म्बरसल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की हथेली से अधिक कोमल हो। और न कभी कोई ऎसी  सूं?शी जो पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की खुशबु से अधिक बढि़या हो। (सहीहबुख़ारी   और सहीह मुस्लिम)   

६. पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम भलाई और नेक काम     केहर मैदान में सिफारिश करना पसंद करते थेःइब्ने अब्बास रजि़यल्लाहु अन्हुमा बयानकरते हैं कि बरीरा के पति एक ग़ुलाम थे जिनका नाम मुग़ीस था, गोया मैं उन्हें देखरहा हूँ कि वह उसके पीछे-पीछे रोते हुए चल रहे हैं और उनके आँसू उनकी दाढ़ी पर बहरहे हैं। यह देख कर पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अब्बास से कहाः ऎअब्बास! क्या आप को इस बात से आश्चर्य नहीं होता कि मुग़ीस किस तरह बरीरा से टूट करप्यार करते हैं और बरीरा किस तरह मुग़ीस से नफरत करती है? फिर पैग़म्बरसल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने (बरीरा) से कहाः "अगर तू उसके पास लौट जात" उसने कहाः ऎ अल्लाह के पैग़म्बर! क्या आप मुझे हुक्म दे रहे हैं? आप सल्लल्लाहु अलैहिव सल्लम ने फरमायाः "मैं सिफारिश कर रहा हूँ।" उसने कहाः मुझे उनकी कोई    ज़रूरतनहीं। सहीह बुख़ारी

७. पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अपनी सेवा स्वयं करतेथेःआइशा रजि़यल्लाहु अन्हा से जब पूछा गया कि पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लमअपने घर में क्या करते थे? तो उन्हों ने बतायाः आप मनुष्यों में से एक मनुष्यथे, अपने कपड़े धोते, अपनी बकरी दूहते और अपनी सेवा करते थे। (सहीह इब्ने हिब्बान)

बल्कि आप के अख्लाक़ की शराफत और बड़प्पन केवल अपनी सेवा आप तक ही सीमित नहीं थाबल्कि आप दूसरों की भी सेवा किया करते थे। आपकी पत्नी आइशा रजि़यल्लाहु अन्हा से जबपूछा गया कि पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अपने घर में क्या किया करते थे? तो उन्हों ने कहाः आप अपने घर वालों की सेवा में लगे रहते थे, जब अज़ान सुनते तोनिकलजाते। (सहीह बुख़ारी)

 

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