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जानवरों के साथ

Auther : डॉक्टर मुहम्मद अब्दुर्रहमान अल अरीफी
1688 2013/02/03 2024/04/24

यदि अच्छी बातें किसी व्यक्ति की आतद बन जाती हैं, तो धीरे-धीरे वही आतद एक प्रकार के स्वभाव में बदल जाती है, और फिर उस व्यक्ति के खून और विचार और उसके व्यक्तित्व का एक अटूट अंग बन जाती है और फिर छूटने को नहीं छूटती है l

इसलिए आप इस प्रकार के व्यक्ति को सदा सहज, हल्का,  आसान, प्यारा, दयालु, सहनशील देखेंगे प्रत्येक के साथ यहाँ तक कि जानवरों के साथ भी बल्कि निर्जीव चीजों के साथ भी l
एक बार अल्लाह के पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- एक यात्रा पर थे, इसी बीच वह शौचालय को गए, उस समय उनके साथियों ने वहीँ कहीं एक पक्षी को देखा जिसके साथ उसके दो चूज़े भी थे, तो उन में से किसी ने उसके दोनों चूजों को उठा लिया, तो वह पक्षी उनके साथ आ गई और उनके चारों ओर मंडलाने लगी, और अपने पंखों को फङफङाने  

लगी, जब हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-वापस आए और उस पक्षी को देखा तो अपने साथियों की ओर पलटे और कहा: इस पक्षी को किसने दुख पहुँचाया, उसके चूज़ों को उस से किसने छीना है? उसके चूज़ों को उसके पास वापस रख दो!
एक अन्य अवसर पर, हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-ने चींटियों के घरौंदे को देखा कि जला दिया गया है तो उन्होंने पूछा:
इसे किसने जलाया है ? उनके एक साथी ने उत्तर दिया: मैंने l
तो हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-नाराज़ हो गए और कहा: अल्लाह को छोड़कर आग के द्वारा सज़ा देने का किसी को अधिकार नहीं है l
हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-इतने दयालु थे कि एक बार जब वह वुज़ू कर रहे थे तो एक बिल्ली उनके पास आगई तो उन्होंने उसे पानी पिलाने के लिए पानी के बर्तन को नीचे झुका दिया, और फिर उसके पीने के बाद बचे हुए पानी से  वुज़ू किया l
इसी तरह एक बार हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-एक आदमी के पास से गुज़रे जब वह ज़मीन पर एक भेड़ को लिटाए हुए था और उसकी गरदन पर अपना पैर रख था और ज़बह करने के लिए उसे पकड़े हुए था, और साथ ही वहीं चाक़ू को तेज़  कर रहा था और जानवर अपनी आँखों को उधर ही फेर कर उसे देख रहा था, जब हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-ने उस व्यक्ति को देखा तो नाराज़ हो गए, और कहा: इसे ज़मीन पर रखने से पहले तुम ने छुरी क्यों तेज़ नहीं कर ली थी?

एक अन्य अवसर पर उन्होंने  दो पुरूषों को देखा कि दोनों अपने अपने ऊँटों पर बैठ कर एक दूसरे के साथ बात कर रहे हैं l जब उन्होंने यह देखा, तो उनको दोनों ऊँटों पर तरस आगया और उन्होंने सवारी के जानवरों को  कुर्सी बाना कर बैठने से मना कर दिया l मतलब:जानवरों पर उसी समय बैठो जब आवश्यक हो l और जब आवश्यकता समाप्त हो जाए तो उतर जाओ और उसे आराम करने दो l

इसी तरह उन्होंने जानवर को उसके मुँह पर दाग़ने से मना किया है l
जानवरों पर दया के विषय में एक बहुत ही मज़ेदार कहानी उल्लेख की गई है l हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- की "अदबा" नामक एक ऊंटनी थी, एक बार अधर्मियों के एक समूह  ने मुसलमानों के ऊँटों को जो पवित्र मदीना के आसपास चरते थे, हांक कर ले गए l और उनहीं ऊँटों में "अदबा" ऊंटनी भी थी, वे मुसलमानों की एक महिला सहित सभी ऊंटों को हांक कर ले गए l

रास्ते में जब वे किसी स्थान पर उतरते थे तो आसपास में चरने के लिए  ऊँटों को छोड़ देते थे l तो रास्ते में एक स्थान पर वे उतरे और सो गए, इस बीच वह औरत उनके हाथों से बच निकलने की योजना रच ली l धीरे से वहाँ से उठी और सवार होने के लिए ऊँटों के पास गई, लेकिन हुआ यह कि जिस ऊँट के नज़दीक गई तो ऊंट ने ज़ोर से आवाज़ किया, और वह महिला डर गई कि कहीं लोग जाग न जाएँ l वह एक के बाद एक ऊंट के पास जाती गई लेकिन सभी ने आवाज़ और शोर मचाया, आख़िर में वह "अदबा" के पास आई और उसको हांकी तो देखी कि वह तो एक वफादार और घंटी वाली ऊँटनी है, तो वह महिला उसपर सवार होगई l और पवित्र मदीना की ओर तेज़ भगाई, "अदबा" तेज़ तेज़ दौड़ने लगी l
जब वह अपने आपको सुरक्षित महसूस करने लगी तो ख़ुशी से झूम उठी, और बोली:हे  अल्लाह! मैं तुम्हें एक वचन देती हूँ कि यदि तू मुझे इस ऊँटनी पर सुरक्षित रूप से पवित्र मदीना पहुँचा दे तो मैं इस ऊंटनी को बलिदान दूंगी l
वह महिला पवित्र मदीना को पहुंच गई, तो लोगों ने हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- की ऊंटनी को पहचान लिया l औरत तो अपने घर को चली आई लेकिन लोगों ने  ऊंटनी को हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-के पास पहुँचा दिया, इस के बाद वह औरत ऊंटनी को ज़बह करने के लिए खोजते हुए उनके पास आई तो हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-ने कहा: क्या ही बुरा बदला तुम उसे देना चाहती हो, कि यदि अल्लाह ने इस ऊंटनी के द्वारा तुम्हें बचा दिया तो तुम उसे ज़बह करोगी l इस के बाद पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- ने कहा: परमेश्वर के अवज्ञा में और उस चीज़ में जो मनुष्य के हाथ में नहीं है मन्नत को पूरी करनी अवश्य नहीं है l

इसलिए आप लोगों के साथ व्यव्हार करने के कौशल,जैसे  नम्रता, प्रसन्नता और दरियादिली, को अपने प्राकृतिक स्वभाव में क्यों नहीं बदल देते ताकि यह गुण आप के ऐसे स्वभाव बन जाएँ जो फिर छूटने का नाम भी न लें, और लगातार आप के संग रहें, और आप का यही व्यव्हार प्रत्येक वस्तु के साथ रहे भले ही निर्जीव और पेड़-पौधे हों l

हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- जब शुक्रवार का उपदेश मस्जिद में देते थे तो अपनी पीठ को खजूर के एक तने से टेक लगाते थे l इस पर अन्सार जाति की एक महिला ने कहा: हे अल्लाह के पैगंबर! क्या मैं आपके बैठने के लिए कुछ न बनवा दूँ जिस पर आप बैठ सकें ? मेरा एक नौकर है जो बढ़ई है, तो हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-ने कहा:यदि आप की इच्छा है l
तो उस महिला ने उनके लिए एक मंच बनवा दिया l और जब अगला शुक्रवार हुआ,तो हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-उस मंच पर ठहरे, जो उनके लिए बनवा गया था, इतने में खजूर का वह तना बैल की तरह दहाड़ने लगा और चिल्ला चिल्ला कर रोने लगा,ऐसा लगा की वह फट पड़े गा, और मसजिद में उसकी आवाज़ गूंजने लगी l
तो हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-मंच पर से उतरे और तने को गले लगाया तब उस बच्चे की तरह सिसकी भरने लगा जो रो रहाहो और उसे फुसलाया जा रहा हो, और तब जाकर वह शांत हुआ l
इस के बाद हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-ने कहा:उसकी क़सम जिस के हाथ में मेरी आत्मा है यदि मैं उसको गले न लगता तो वह क़ियामत तक इसी तरह रोता रहता l

 

एक संकेत l

अल्लाह ने मानव को सम्मानित किया है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि वह उसके अन्य प्राणीयों को सताए l 

 

 

 

 

 

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