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बच्चों के साथ

Auther : डॉक्टर मुहम्मद अब्दुर्रहमान अल अरीफी
1942 2013/02/02 2024/11/17

कितने ही ऐसी घटनाऐं हैं जो हमारे बचपन में हमारे साथ घटी थीं लेकिन वे आज भी हमारे दिमागों में बैठी हैं l भले ही वे यादें प्रसन्नता देने वली हों या दुख देने वाली?
अपने सोच को ज़रा पीछे अपने बचपन के समय की ओर वापस लेकर चलिए l निसंदेह आप को कोई न कोई ऐसी याद मिल ही जाए गी जैसे स्कूल में आपको किसी पुरस्कार से सम्मानित किया गया हो  l या किसी सार्वजनिक सभा  में किसी की ओर से आपकी तारीफ की गई हो l  

यह ऐसी घटनाएँ हैं जो स्मृति पर इस तरह छपी हुई रहती हैं कि आप  उन्हें कभी भूल नहीं सकते l

इसी प्रकार हम अपनी दुखी यादें को भी याद रखते हैं जो कभी बचपन में हमारे साथ बीती थीं l किसी शिक्षक ने हमें मारा था, या स्कूल के सहयोगियों में से किसी के साथ लड़ाई हो गई थी l या परिवार के सदस्य द्वारा अपमानित किया गया था, या अपनी सौतेली माँ की ओर से कोई घटना घटी थी, इत्यादि l अक्सर बच्चों के साथ अच्छा व्यवहार करने से केवल वही प्रभावित नहीं होते हैं बल्कि उनके मातापिता और परिवार भी प्रभावित होते हैं l और इसके द्वारा उन सब का प्यार और सम्मान जीता जा सकता है ?
ऐसा अक्सर होता है कि प्राथमिक स्कूल के शिक्ष से उनके शिष्यों के मातापिता, संपर्क करते हैं  और उनके लिए आभार प्रकट करते हैं और उन्हें धन्यवाद देते  हैं  और कहते हैं: क्योंकि आप मेरे बच्चे से प्यार रखते हैं और उसे सम्मान देते हैं और भलाई के साथ याद उसे करते हैं इसलिए हम भी आप से प्यार रखते हैं, कभी तो वे चलते चलते यूँही और सरसरी भेंट में अपनी इन भावनाओं को स्पष्ट कर देते हैं, और कभी कभी उपहार या मेसेज के द्वारा आभार व्यक्त करते हैं l

इसलिए, आप बच्चोँ के लिए भी मुस्कुराने को या उनके दिलों को मोहने  को छोटी बात मत समझिए l और उनके साथ शानदार और ज़बरदस्त व्यव्हार के प्रयोग करना मत भूलिए l

एक बार एक स्कूल में छोटे छोटे बच्चों के एक समूह में मैंने नमाज़ के महत्व के विषय में एक व्याख्यान दिया l मैंने नमाज़ के महत्व से संबंधित कोई हदीस सुनाने के लिए कहा, तो उनमें से एक ने कहा:हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- ने कहा: "एक व्यक्ति और अधर्मी या मूर्तिपूजा के बीच नमाज़ छोड़ने का ही फासला है l"

मुझे उसका उत्तर बहुत पसंद आया, मैं इतना अधिक प्रभावित हुआ कि मैं ने तुरंत अपनी घड़ी उतार कर उसे दे दिया, हालांकि, मेरी घड़ी कोई विशेष घड़ी तो नहीं थी बल्कि साधारण लोगों के बांधने की एक घड़ी थी, यह घटना बच्चे के लिए प्रोत्साहित करने वाली साबित हुई l वह पढ़ने-लिखने में और अधिक ध्यान देने लगा, और पवित्र क़ुरआन को याद करने के लिए प्रोत्साहित हो गया l क्योंकि उसने स्वयं ही उसके महत्व को महसूस कर लिया था l
कई साल बीत गए, तो एक बार अचानक मेरा एक मस्जिद  में जाना हुआ तो पता चला कि वही बच्चा अब मस्जिद का इमाम है l अब वह
जवान हो चुका था और शरिया कॉलेज से स्नातक की उपाधि प्राप्त कर चुका , और अब वह एक अदालत में काम कर रहा है l  मुझे तो याद नहीं  रहा था, लेकिन उसने मुझे याद रखा l

तो देखा आप ने कि एक घटना के कारण जो कई साल पूर्व उसके साथ घटी थी फिर भी उसके मन में  प्यार और सम्मान को कैसे बैठा दिया l
मुझे याद है कि मैं एक बार एक शादी समारोह में आमंत्रित था वहाँ एक
एक  तरोताज़ा चेहरे वाला युवा  मेरे पास आया और बहुत ही गर्मजोशी  से मुझे सलाम किया और फिर मुझे उसके साथ अपने बचपन की एक दिलचस्प याद को याद दिलाया की मैंने उनके स्कूल में एक व्याख्यान दिया था जब वह बच्चा था l

कभी कभी हम यह भी देखते हैं कि यदि बच्चों को किसी के द्वारा कृपालु व्यवहार मिलता है तो वह अपने पिता को भी मसजिद से निकलते समय  उनकी ओर खींच लाते हैं और उनसे मिलते हैं और फिर पिता भी उनको सलाम करते हैं और बता देते हैं कि उनके बच्चे से प्यार के कारण वे सब भी उन से बहुत प्यार रखते हैं l

और कभी कभी ऐसी घटना किसी बड़ी विवाह के भोज के अवसर पर भी होती है जहाँ बड़ी संख्या में आमंत्रित इकठ्ठा होते हैं l
मैं इस सच्चाई को छिपा नहीं सकता कि मैं बच्चों के साथ बहुत दयापूर्ण व्यवहार करता हूँ और उनका सदा स्वागत करता हूँ l
केवल यही नहीं बल्कि मैं तो उनकी मीठी मीठी बातोँ को बहुत ध्यान से सुनता हूँ, भले ही अधिकांश उनकी बातें उतनी महत्वपूर्ण नहीं होती हैं, कभी कभी तो मैं उन बच्चोँ का उनके मातापिता के सम्मान के लिए उनका दिल जीतने के लिए हार्दिक स्वागत करता हूँ l
मेरे एक दोस्त से कभी कभी भेंट करता था और उनके साथ उनका छोटा बच्चा भी होता था तो मैं उस छोटे बच्चे का बड़ा ख्याल करता था और उसके साथ लाड और प्यार का व्यवहार करता था l

एक दिन, मेरा यह दोस्त अपने बेटे के साथ एक शादी की बड़ी पार्टी में मुझ से मिला l वह अपने बच्चे के साथ मेरे पास आया और मुझे सलाम किया और कहा: आपने मेरे बच्चे पर क्या जादू चलाया है कि स्कूल में उनके शिक्षक ने अपने शिष्यों से पूछा कि वे आगे चल कर क्या बनना चाहते हैं? उनमें से कुछ छात्रों ने कहा कि जब वे बड़े होंगे तो वे डॉक्टर बनेंगे,  और कुछ ने कहा कि वे इंजीनियर बनेंगे लेकिन मेरे बेटे ने कहा कि वह मुहम्मद अल-अरीफी बनना चाहता है l

आप बच्चों के साथ व्यवहार करने में लोगों को अलग अलग प्रकार के पाएंगे l जब एक व्यक्ति किसी सार्वजनिक सभा में प्रवेश करता है और एक एक करके सभी के साथ हाथ मिलाता है और उसका बच्चा भी उसके पीछे होता है, और अपने पिता की तरह ही लोगों से हाथ मिलाता जाता है l उस समय आप देखेंग कि कुछ लोग उस छोटे बच्चे से हाथ मिलाना भूल जाते हैं और कोई बेपरवाही से हाथ के किनारे से हाथ मिला लेता है l लेकिन कुछ लोग उसका हाथ अपने हाथ में लेकर हाथ हिलाते हुए मुस्कुराकर यह कहते हुए संबोधित करते हैं: आपका विशेष स्वागत हे हीरो! क्या हो रहा है चतुर? और होता यही है कि उसका प्यार उस नन्हे के दिल में बैठ जाता है, बल्कि उसके मातापिता के दिल में भी उनके प्यार केलिए जगह बन जाती है l
सब से पहले शिक्षक  हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- बच्चों के साथ बहुत ही अच्छा व्यवहार करते थे, हज़रत अनस बिन मालिक-अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे- को एक छोटा भाई था, और हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-  उसके साथ लाड करते थे और प्यार से उसको अबू-उमेर का नाम देकर संबोधित करते थे, उस बच्चे के पास एक छोटी पक्षी थी जिसके साथ वह खेला करता था लेकिन संयोग से  वह पक्षी मर गई तो वह जब भी उससे मिलते थे तो मज़ाक़ से उसे कहते थे:हे अबू-उमेर तुम्हारे नुग़ैर(पक्षी) को क्या हुआ?

वास्तव में वह दयालु और बच्चों के साथ चंचल  रहते थे l वह बच्चों पर बहुत दया करते थे, बल्कि उनके साथ खेला भी करते थे l इसी तरह वह ज़ैनब बिन्त-उम्म-सलमह! को प्यार से "हे ज़ुवैनिब! हे ज़ोवैनिब!" कहते थे और जब भी वह! खेलते हुए बच्चों के पास से गुज़रते थे, तो वह उन्हें सलाम करते थे l इसी तरह जब भी वह अन्सार के यहाँ से गुज़रते थे तो, वह उनके बच्चों को सलाम करते थे और अपने हाथ उनके सिर पर फैरते थे l  
हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- जब किसी जंग से वापस लौटते तो स्वागत करने के लिए बच्चे निकल पड़ते थे तो उन बच्चों को अपने साथ सवारी पर बैठा लेते थे l

"मुअता" नामक जंग से वापसी के समय जब मुसलमान सेना पवित्र मदीना को लौट कर आ रहे थे, तो हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- और उनके साथ अन्य मुसलमान उनके स्वागत के लिए निकले और और बच्चे भी दौड़ते हुए उनके साथ हो गए, हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- ने बच्चों को देखा तो कहा: यह लो कृपया बच्चों को अपने साथ सवारी पर बैठा लो और जअफर के बेटे को मुझे दे दो l अबदुल्ला बिन जअफर को लाया गया तो उन्होंने उसे अपने बाँह में ले लिया l
एक दिन हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- पानी से वजू कर रहे थे l इतने में उनके पास एक पांच वर्षीय बच्चा महमूद बिन रबीअ आ गया तो हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- ने अपने मुंह में पानी लिया और मज़ाक़ में उनके चेहरे पर पानी फेंका l[1]
आमतौर पर हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- लोगों के साथ हंसीख़ुशी से रहते थे l वह सदा लोगों के दिलों को ख़ुश करने का प्रयास करते थे, उन के साथ सहज रूप से रहते थे, उनके साथ बैठना लोगों पर कभी भी भारी नहीं गुज़रता था, और न कोई उन की बैठक में उबता था l  

एक दिन एक आदमी हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- के पास आया और उनसे सवारी करने और जंग में भाग लेने के लिए एक जानवर माँगा, तो उन्होंने उसे मज़ाक़ से कहा:मैं तुम्हें ऊँटनी का एक बच्चा दूँगा l तो वह आदमी आश्चर्य रह गया और सोच में पड़ गया कि  एक नन्हे ऊंट के बच्चे पर सवारी कैसे हो सकेगी! ऊंट का बच्चा तो उसको उठा ही नहीं सकेगा l तो उस आदमी ने कहा: हे अल्लाह के पैगंबर! मैं ऊँटनी के बच्चे को लेकर क्या करूँगा? इस पर हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-ने कहा: आख़िर ऊँटों को तो ऊँटनियां ही जन्म देती हैं l

मतलब, मैं तुम्हें एक बड़ा ऊंट ही दुंगा लेकिन वह भी किसी न किसी ऊँटनी से ही जन्म लिया होगा और किसी ऊँटनी का ही बच्चा होगा l

एक बार हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-ने मज़ाक़ में हज़रत अनस, से कहा: हे! बड़े बड़े कानों वाला!

एक बार एक महिला हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-के पास अपने पति की शिकायत  लेकर आई तो उन्होंने उससे कहा: तुम्हारे पति वही हैं जिसकी आँखें में सफेदी है? तो वह महिला बहुत चिंतित हो गई और डर गई कि कहीं उसका पति अंधा तो नहीं हो गया है, जैसा कि अल्लाह सर्वशक्तिमान ने पैगंबर हज़रत याक़ूब-अल्लाह की ओर से उन पर सलाम हो- के बारे में कहा: " وابيضت عيناه من الحزن " (और उनकी दोनों आँखें दुख के कारण सफेद हो गईं) मतलब अंधा होगए l
वह डर कर अपने पति के पास वापस चली गई और घूर घूर कर उसकी आँखों में झाँकने लगी, तो उस आदमी ने पूछा क्या बात है? पत्नी ने कहा कि: हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- ने कहा कि    तुम्हारी आँखें में सफेदी है! तो उस आदमी ने कहा:हे औरत! ज़रा यह तो बताओ क्या उन्होंने यह नहीं कहा:कि मेरी आँखों की सफ़ेदी स्याही से अधिक है? प्रत्येक की आँखों में सफेदी और कालापन तो होते ही हैं l
और यदि हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-से  कोई हँसी मज़ाक की बात करता था तो वह उसका साथ देते थे l और हँसते और मुस्कुराते थे l
एक बार हज़रत उमर बिन ख़त्ताब  हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-के  पास आए, उस समय हज़रत उमर बिन ख़त्ताब अपनी किसी पत्नी पर नाराज़ थे क्योंकि वे अधिक ख़र्च मांग रहीं थीं तो हज़रत उमर बिन ख़त्ताब आकर बोले: हे अल्लाह के पैगंबर! हमें याद है कि हम क़ुरैश के लोग महिलाओं को दबा कर रखते थे, और यदि हमारी कोई भी महिला अधिक ख़र्च की मांग करती थी, तो हम कूद कर उसकी गरदन मरोड़ देते थे ! लेकिन  जब हम मदीना अए तो यहाँ पत्नियां अपने पतियों के सिर पर बैठ जातीं हैं और हमारी भी पत्नियां उनकी पत्नियों से सीखने लग गईं l मतलब: हमारी भी पत्नियां हमारे सिरों पर चढ़ गईं, हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-इस बात पर मुस्कुराए l तो हज़रत उमर इस विषय पर और भी बात किए  तो हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- उनका साथ देने के लिए और अधिक मुस्कुराए l
और आप दूसरी अन्य हदीसों में पढ़ेंगे कि वह इतना अधिक मुस्कुराए कि उनके चव दांत तक देखने लगे थे l

वास्तव में वह हंसीख़ुशी से लोगों के साथ रहते और उनकी बैठक हंसी और प्रसन्नता से भरपूर होती थी, इसलिए यदि हम भी अपने आपको लोगों के साथ इसी प्रकार के व्यव्हार का पाबंद बना लें तो फिर निश्चित रूप से हम भी अपनी जीवन का स्वाद चख सकते हैं l
एक विचारधारा l
बच्चे कच्ची मिट्टी की तरह हैं इसलिए हम उनको अपने व्यवहार के अनुसार जिस रूप में ढालना चाहें ढाल ले सकते हैं l

 


[1]  इसे बुखारी ने उल्लेख किया l

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