Search
सफर करो ताकि फायदा हासिल कर सको।
तर्जुमा: ह़ज़रत अबू हुरैरा रद़ियल्लाहु अ़न्हु बयान करते हैं कि नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया: "सफर करो ताकि फायदा हासिल कर सको। रोज़ा रखो ताकि तंदुरुस्त रहो और अल्लाह की राह में जिहाद करो ताकि गनीमत मिले।"
मुह़म्मद सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम एक बेहतरीन शिक्षक व पैगंबर और एक अच्छे डॉक्टर व ऐसे हकीम हैं जिनके दिल से ह़िकमतों के चश्मे फूटते हैं। जिनकी वसियतें अच्छे अखलाक व ऊंचे विचारों और बेहतरीन व्यवहार के नियम और हर तरह से अच्छी व महान जिंदगी का तरीका हैं। ऊपर बयान हुई वसियत उन्हीं लाभदायक वसियतों में से एक है जिनको हर सूरत में मद्देनज़र रखते हुए उन पर अमल करना चाहिए।
ह़दीस़ पाक का मतलब यह है कि जो व्यक्ति भी अपना घरबार छोड़कर अल्लाह की लम्बी-चौड़ी ज़मीन में सफर करता है ताकि उसकी राह में जिहाद करे या ज्ञान हासिल करे या रोजी- रोटी कमाए या कोई और जायज़ लक्ष्य को पूरा करे तो वह जिस जगह सफर करके जाता है वहाँ उसे उसकी मुराद मिल जाती है
जो व्यक्ति अल्लाह की तरफ हिजरत के इरादे से अपने घर से निकले और रास्ते ही में उसे मौत आ जाए तो बेशक उसका सवाब अल्लाह के यहाँ है क्योंकि हर काम का दारोमदार नियत पर है।
कभी-कभी सफर करना वाजिब (अनिवार्य) होता है जैसे कि हज की अदायगी के लिए सफर करना, ज्ञान के प्राप्त करने के लिए सफर करना जबकि उसके शहर में कोई ज्ञान सिखाने वाला ना हो और रोजगार के लिए सफर करना जबकि उसके शहर मैं जिंदगी बसर करना दुश्वार हो जाए या कमाने का कोई जरिया ना हो। इसी तरह उस समय भी सफर करना अनिवार्य वाजिब (अनिवार्य) है जबकि उसे फितने में पड़ने का अंदेशा हो।
और कभी सफर करना मुस्ताहब यानी बेहतर होता है जबकि उससे दुनिया में फैली हुई अल्लाह की निशानियों में गौर व फिक्र करना मकसूद हो या तंदुरुस्ती हासिल करना मकसूद हो। क्योंकि सफर से नफ्स (आत्मा) को सुकून मिलता है और बदन को ताकत मिलती है जैसा कि आगे इस का बयान आएगा। इनके अलावा चीजों में सफर करना जायज़ है जबकि गुनाह और अल्लाह की नाफरमानी के लिए सफर करना हराम और नजायज़ है।
सफर करने के बारे में लोगों के अलग अलग विचार हैं कुछ तो यह समझते हैं कि सफर के बहुत से फायदे हैं जिन्हें किसी इंसान को छोड़ना नहीं चाहिए जबकि कुछ लोग यह कहते हैं कि सफर में बहुत सी परेशानियाँ और दुश्वारियाँ हैं और उसके कुछ भी महत्वपूर्ण फायदे नहीं हैं।
मुसाफिर को सफर के दौरान ऐसी चीज़ें मिलती हैं जिनसे उसकी आत्मा को सुकून मिलता है। वह खुश होती है। उसके अंदर चुस्ती आती है। उसके विचार में तरक्की होती है। अल्लाह कि वह़दानियत (एकता) और उसकी महान कुदरत पर दलीलें देखकर उसके इमान में ज़्यादती होती है तथा उसे रोज़गार अलग मिलता है जिससे वह अपने धर्म और दुनिया को सुरक्षित रख सकता है। और जायज़ माल के प्राप्त करने से जिंदगी को अच्छा बना सकता है।
तो इससे पता चलता है कि सफर में सुकून और तंदुरुस्ती छुपी हुई हैं। और यह दोनों ऐसी महान नेमतें हैं जिनमें ईमान के बाद सभी नेमतें हैं।