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पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के कुछ स
पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लमके कुछ सदव्यवहार,
स्वभाव औरगुण-विशेषण.( पहला भाग)
1. परिपूर्ण बुद्धिःपैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम परिपूर्णबुद्धिमानता की उस चरम सीमा पर पहुंचे हुए थे जहाँ आप के सिवा कोई मनुष्य नहींपहुंचा है। क़ाज़ी अयाज़ कहते हैं: "परिपूर्ण बुद्धि और उस की विभिन्न शाखाओं में पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का सर्वश्रेष्ट स्थान उस आदमी के निकटनिशिचत रूप से सिद्ध और साबित है जो आप के हालात और समाचार के धारे तथा आप के स्वभाव की निरंतरता और व्यवहार कुशलता को खोजता और टटोलता है,आप के जवामिउल-कलिम(संक्षिप्त परन्तु अर्थपूर्ण व्यापक कथन), आप के शिष्टाचार की सुंदरता, आपके अनुपमजीवन चरित्र् और आप की बुद्धिमत्ता की बातों का अध्ययन करता है,तथा तौरात, इन्जील औरअन्य उतरी हुई आसमानी किताबों में मौजूद बातों, बुद्धिमानों के कथनों, पिछली क़ौमों(समुदायों) के हालात एंव समाचार, कहावतों (लोकोत्तियों)और लोक राजनीतियों के विषय मेंआप के ज्ञान और जानकारी से अवगत होता है, तथा आप का संविधान रचना एंव संचालन, उत्तमशिष्टाचार और सराहने योग्य स्वभाव एंव व्यवहार की स्थापना करना, तथा इनकेअतिरिक्त अनेक प्रकार के शास्त्र् एंव विज्ञान (से अवज्ञत होता है) जिनके विषयमें पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के कथन, उनके ज्ञानियों ने अपना आदर्श औरआप के संकेतों को हुज्जत (तर्क) बनाया है, जैसे- ख़ाब की ताबीर (स्वपनफल), तिब(आयुर्वेद), हिसाब (गणित शास्त्र्), विरासत (मुरदे की जायदाद को बांटने का शास्त्र् )औरनसब (वंशावली शास्त्र् )इत्यादि.... इन समस्त चीज़ों की जानकारी आप को बिना शिक्षाऔर पढ़ाई के प्राप्त थी। इसके लिए आप ने कहीं शिक्षा प्राप्त नहीं की, और न आप नेपिछले लोगों की किताबों का पाठ किया और न ही आप उनके ज्ञानियों और विद्वानों के पासबैठे, बल्कि आप एक अनपढ़ (निरक्षर) ईश्दूत थे (पढ़ना लिखना जानते ही न थे) । आप को इनमें से किसी भी चीज़ का ज्ञान नहीं था यहाँ तक कि अल्लाह तआला ने आप के सीने को खोलदिया, आप के मामले को स्पष्ट कर दिया, आप को सिखाया और पढ़ाया। (अशिशफाबि-तारीफि हुक़ूकि़ल-मुस्त्फा १/८५)
२. एहतिसाब (अथार्त किसी भी काम का बदला अल्लाहतआला से चाहना):पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जो भी काम करते थे उसका बदलाकेवल अल्लाह तआला से चाहते थे और इस मैदान में आप सब के नायक थे। आप को अपनी दावतके फैलाने के मार्ग में बहुत कष्ट और कठिनाईयों का सामना करना पड़ा, किन्तु आप ने धैर्य के साथ और अल्लाह की ओर से अज्र व सवाब और बदले की उम्मीद रखते हुए सब कुछसहन कर लिया। अब्दुल्लाह बिन मस`ऊद रजि़यल्लाहु अन्हु कहते हैं: गोया मैं पैग़म्बरसल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को देख रहा हूँ कि आप एक ईश्दूत का बयान कर रहे थे जिन्हेंउनकी क़ौम ने मारा-पीटा था और वह अपने चेहरे से खून पोंछते हुए कह रहे थेः "ऎअल्लाह! मेरी क़ौम को क्षमा कर दे क्योंकि वह नहीं जानती"। (सहीह बुख़ारी व सहीहमुस्लिम)
जुन्दुब बिन सुफ्यान कहते हैं: एक लड़ाई के दौरान पैग़म्बर सल्लल्लाहुअलैहि वसल्लम की अंगुली घायल हो गई तो आप ने फरमायाः॑॑ "तू एक अंगुली है जो घायल होगई है, जो तकलीफ तुझे पहुंची है वह अल्लाह के रास्ते में है।" (सहीह बुख़ारी व सहीहमुस्लिम)
३. इखलास (निःस्वाथर्रता): (अथार्त कोई भी काम केवल अल्लाह तआला की प्रसन्नताप्राप्त करने के लिए करना) पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अपने तमाम कामों औरमामलों में मुख़्शलस –निःस्वार्थ - थे, जैसाकि अल्लाह तआला ने आपको इसका आदेश देतेहुये फरमायाः
"आप कह दीजियेकि निःसंदेह मेरी नमाज़ और मेरी समस्त उपासना (इबादत) और मेरा जीना और मेरा मरना; येसब केवल अल्लाह ही के लिए है जो सारे संसार का पालनहार है। उसका कोई साझी नहीं औरमुझे इसी का आदेश हुआ है और मैं सब मानने वालों में से पहला हूँ।" (सूरतुल-अनआमः१६२-१६३)
५. सद्दव्यवहार -खुश अख्लाक़ी-और सामाजिकताःआप की पत्नी आइाशा रजि़यल्लाहुअन्हा से जब आप के आचार के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहाः "क़ुरआन करीम हीआप का आचार-अख्लाक़-था।" (मुसनद अहमद)
इस का अर्थ यह है कि पैग़म्बर सल्लल्लाहुअलैहि व सल्लम क़ुरआन करीम के आदेशशों का पालन करने वाले और उसकी मना की हुई(निषिद्धि) चीज़ों से बचने वाले थे। उसके अंदर जिन विशेषताओं और गुणों का उल्लेखकिया गया है उनको अपनाने वाले और अपने आप को उनके अनुसार ढालने वाले थे। जिनज़ाहिरी या बातिनी (प्रत्यक्ष या परोक्ष) बुराईयों से क़ुरआन ने रोका है उन्हेंत्यागने वाले थे।
और इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है; क्योंकि आप का ही यह फर्मानहैः
"अल्लाह तआला ने मुझे उत्ताम अख़्लाक़ और अच्छे कामों की तकमील (परिपूर्ण) करनेके लिए भेजा है।" (अदबुल-मुफरद लिल-बुख़ारी, मुसनद अहम)
अल्लाह तआला ने कु़रआन मेंअपने इस कथन के द्वारा आप की विशेषता का वर्णन किया हैः
"निःसंदेह आप महान अख़्लाक़ पर हैं।(सूरतुल-क़लम :४) अनस बिन मालिक -जिन्हों ने दस साल तक रात व दिन और यात्रा व निवासमें आपकी सेवा की और उसके दौरान आपके अहवाल का ज्ञान प्राप्त किया- कहते हैं:अल्लाह के पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम लोगों में सब से उत्ताम अख़्लाक़ केमालिक थे। (सहीह बुख़ारी व सहीह मुस्लिम)
तथा वह कहते हैं: "पैग़म्बर सल्लल्लाहुअलैहि वसल्लम न गाली बकते थे, न फक्कड़ बाज़ी करते थे और न शाप देते थे। अगर आपकिसी को डांट फटकार करते थे तो केवल इतना कहते थेः उसे क्या हो गया है? उसकीपेशनी खाक आलूद हो ! (मटटी में सने)।" (सहीह बुख़ारी)
५. अदब व सलीक़ा(सभ्यता औरशिष्टता): सहल बिन सअद रजि़यल्लाहु अन्हु बयान करते हैं कि पैग़म्बर सल्लल्लाहुअलैहि वसल्लम के पास पीने वाली कोई चीज़ लाई गई जिस में से आप ने पिया। आपके दाहिनेओर एक बच्चा और आपके बायें ओर बड़े-बड़े लोग थे, आप ने बच्चे से कहाः "क्या तुममुझे यह इजाज़त देते हो कि यह पीने वाली चीज़ इन लोगों को दे दूँ"?बच्चे ने कहाःअल्लाह की क़सम मैं आपसे मिलने वाले अपने हिस्से पर किसी को प्राथमिकता नहीं देसकता। सहाबी कहते हैं:चुनाँचे आप ने उस चीज़ को उस बच्चे के हाथ में रख दिया। (सहीहबुख़ारी व सहीह मुस्लिम)
६. सुलह पसंदी(संधि प्रियता) : आप सुधार और संधि प्रिय थे, सहल बिन सअद कहते हैं: क़ुबा वालों ने आपस में लड़ाई-झगड़ा किया यहाँ तक कि एकदूसरे पर पत्थर बाज़ी किये, जब पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को इसकी सूचनामिली तो आप ने फरमायाः"चलो चलकर हम उनके बीच समझौता –सुलह-करा दें।"(सहीहबुख़ारी)
७. भलाई का आदेशश देना और बुराई से रोकनाः अब्दुल्लाह बिन अब्बास रजि़यल्लाहुअन्हुमा बयान करते हैं कि पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने एक आदमी के हाथमें सोने की एक अंगूठी देखी तो उसे निकाल कर फेंक दिया और फरमायाः "तुम में से कोईव्यक्ति आग का अंगारा ले कर अपने हाथ में डाल लेता है!"जब पैग़म्बर सल्लल्लाहुअलैहि वसल्लम चले गये तो उस आदमी से कहा गया कि अपनी अंगूठी ले लो और उस से लाभउठाओ। उसने कहाः नहीं, अल्लाह की क़सम! जब पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम नेउसे फेंक दिया तो मैं उसे कभी भी नहीं उठा सकता। (सहीह मुस्लिम)
८. पवित्र्ता और सफाईपसंदीःआप बहुत पवित्रता और स्वच्छता प्रिय थे, मुहाजिर बिन क़ुनफुज़ बयान करतेहैं कि वह पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास आये इस हाल में कि आप पेाशबकर रहे थे। उन्हों ने आप को सलाम किया तो आप ने उसका जवाब नहीं दिया यहाँ तक कि आपने वुज़ू कर लिया, फिर आप ने उनसे क्षमा याचना करते हुए कहा : "मैं ने बिना पाकीके अल्लाह तआला का जि़क्र स्मरण करना पसंद नहीं किया।" (सुनन अबूदाऊद)
९. ज़ुबान कीसुरक्षाःअब्दुल्लाह बिन अबी औफा बयान करते हैं कि पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अल्लाह का अधिक जि़क्र करते थे, निरर्थक और बेकार बात नहीं करते थे, नमाज़लम्बी करते थे और ख़ुत्बा छोटा, और किसी विधवा या मिस्कीन के साथ चलकर उसकी आवश्यकतापूरी करने में कोई घृणा नहीं करते थे। (सुनन नसाई)
१. अधिक उपासनाःआइशा रजि़यल्लाहुअन्हा कहती हैं: पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम रात को जाग कर नमाज़ पढ़ते थेयहाँ तक कि आपके दोनों पाँव फट जाते थे। {एक रिवायत के शब्द यह हैं कि : यहाँ तक किआप के पाँव फूल जाते थे।} इस पर आइाशा रजि़यल्लाहु अन्हा ने आप से पूछाः ऎ अल्लाह केपैग़म्बर! आप ऎसा क्यों करते हैं? जबकि अल्लाह तआला ने आप के अगले और पिछले गुनाहमाफ कर दिये हैं। आप ने फरमायाः "क्या मैं अल्लाह का शुक्र गुज़ार बन्दा नबनूँ?"(सहीह बुख़ारी व सहीह मुस्लिम)
११. नम्रता और नर्म दिलीः अबू-हुरैरहरजि़यल्लाहु अन्हु कहते हैं: तुफैल बिन अम्र दौसी और उनके साथी पैग़म्बरसल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास आए और उन्हों ने कहाः ऎ अल्लाह के पैग़म्बर!क़बीला दौस वालों ने अवहेलना और इन्कार किया है, आप उन पर बद`-दुआ (शाप) कर दीजिए। इसपर कहा गया कि दौस क़बीला का अब सर्वनाश हुआ। तो पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम ने कहाः "ऎ अल्लाह! तू दौस वालों को हिदायत (मार्ग दर्शन) प्रदान कर औरउन्हें लेकर आ।"(सहीह बुख़ारी व सहीह मुस्लिम)
१२. अच्छी वेशभृषा:बरा बिन आजि़बरजि़यल्लाहु अन्हु कहते हैं: पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का आकार दरमियानाथा, दोनों कंधों के बीच दूरी थी, बाल दोनों कानों की लुरकी तक पहुंचते थे। मैं नेआप को एक लाल जोड़ा पहने हुए देखा। मैं ने आप से अधिक सुंदर कभी कोई चीज़ नहींदेखी। (सहीह बुख़ारी वसहीह मुस्लिम)
१३. दुनिया से बे-रग़बती (अरूचि): अब्दुल्लाह बिनमसऊद रजि़यल्लाहु अन्हु कहते हैं: पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम एक चटाई परसोए थे, आप उठे तो आप के पहलू में उसके निशानात थे, इस पर हम ने कहाः ऎ अल्लाह केपैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! क्या हम आप के लिए एक बिस्तर की व्यवस्था न करदें? आप ने फरमायाः"मुझे दुनिया से क्या लेना देना, मैं तो दुनिया में उस सवारके समान हूँ जिसने एक पेड़ के नीचे विश्राम किया फिर उसे छोड़ कर चला गया।"(सुनन-र्तिमिज़ी)
अम्र बिन हारिस रजि़यल्लाहु अन्हु कहते हैं: पैग़म्बर सल्लल्लाहुअलैहि व सल्लम ने अपनी वफात के समय न कोई दिरहम छोड़ा न दीनार, न कोई ग़ुलाम छोड़ान कोई लौण्डी। आप ने केवल अपना सफेद खच्चर, हथियार और एक टुकड़ा ज़मीन छोड़ा जिसेआप ने ख़ैरात कर दिया। (सहीह बुख़ारी)
१४. ईसार (स्वार्थ त्याग):अथार्त अपने ऊपर दूसरे को प्राथमिकता देना। सहल बिन सअद बयान करते हैं किः एक महिला एक बुर्दा (चादर) लेकरआई। पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने सहाबा से कहाः "क्या तुम जानते हो किबुर्दाक्या है?" आप से कहा गयाः जी हाँ, ये वह चादर होती है जिसके किनारे बेलबूटे बने होते हैं। उस महिला ने कहाः ऎ अल्लाह के पैग़म्बर! मैं ने इसे आप कोपहनाने के लिए अपने हाथ से बुना है। चुनाँचे पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लमने उसे ले लिया, आप को इसकी आवश्यकता थी। कुछ देर बाद आप उसे पहने हुए हमारे पास आएतो क़ौम के एक आदमी ने कहाः ऎ अल्लाह के पैग़म्बर! यह मुझे पहनने के लिए दे दीजिये।आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः "ठीक है।" इसके बाद कुछ देर आप मज्लिसमें बैठे रहे, फिर घर वापस गए, चादर को लपेटा और उसे उस आदमी के पास भिजवा दिया।क़ौम के लोगों ने उस से कहाः तुम ने चादर माँग कर अच्छा नहीं किया, जबकि तुम अच्छीतरह जानते हो कि आप किसी साइल मांगने वाले को खाली हाथ नहीं लौटाते हैं। उस आदमी नेकहाः अल्लाह की क़सम! मैं ने इसे केवल इस लिए माँगा है ताकि यह मेरे मरने के दिनमेरा कफन बन जाए। सहल कहते हैं, चुनाँचे वह चादर उनकी कफन बनी थी। (सहीह बुख़ारी)
१५.ईमान की शक्ति और अल्लाह पर भरोसाःअबू-बक्र सिददिक रजि़यल्लाहु अन्हु बयान करतेहैं: जब हम ग़ार (सौर नामी गुफा) में छुपे थे तो मैं ने मुशरिकों के पाँवों को अपनेसिर के पास देखा और मैं बोल पड़ाः ऎ अल्लाह के पैग़म्बर! अगर उन में से कोई आदमीअपने पाँव की तरफ निगाह करे तो हमें अपने पाँव के नीचे देख लेगा। इस पर आप नेफरमायाः "ऎ अबू-बक्र ऎसे दो आदमियों के बारे में तुम्हारा क्या विचार है जिनकातीसरा अल्लाह है।"(सहीह बुख़ारी व सहीह मुस्लिम)