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जूता पहन कर नमाज़ पढ़ना
जूता पहन कर नमाज़ पढ़नाः
13- जिस प्रकार आदमी के लिए नंगे पैर नमाज़ पढ़ना जाइज़ है, उसी तरह उस के लिए जूता पहन कर भी नमाज़ पढ़ना जाइज़ है।
14- लेकिन अफज़ल (बेहतर) यह है कि कभी नंगे पैर नमाज़ पढ़े और कभी जूता पहन कर, जैसा कि उस के लिए आसान हो। अतः नमाज़ पढ़ने के लिए उन दोनों को पहनने का कष्ट न करे और न ही (यदि उन्हें पहने हुए है तो) उन दोनों को निकालने का कष्ट करे, बल्कि अगर नंगे पैर है तो नंगे पैर ही नमाज़ पढ़ ले, और अगर जूता पहने हुए है तो जूता पहने हुए नमाज़ पढ़े, सिवाय इस के कि कोई मामला पेश आ जाये।
15- और जब उन दोनों (जूतों) को निकाले तो उनको अपने दाहिने तरफ न रखे, बल्कि उसे अपने बायीं तरफ रखे जबकि उस के बायें तरफ कोई आदमी नमाज़ न पढ़ रहा हो, नहीं तो उन दोनों को अपने दोनों पैरों को बीच में रखे, (मैं कहता हूँ किः इस में हल्का सा इशारा है की आदमी जूतों को अपने सामने नहीं रखेगा, और यह एक शिष्टाचार है जिस की नमाजियों की बहुमत उपेक्षा करती है, अतः आप उन्हें अपने जूतों की ओर नमाज पढ़ते हुए देखेंगे), अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से इस का आदेश साबित है।