(195) मोमिन की फ़िरासत (अन्तर्दृष्टि, होशियारी व समझदारी) से डरो।
(194) जब लोगों के बीच बिगाड़ हो जाए तो उनमें मिलाप कराओ और जब उनमें दूरी हो जाए तो उन्हें एक दूसरे के नज़दीक करो।
(193) अनाथों की संपत्तियों को व्यापार में लगा दो कि उन्हें ज़कात नहीं खाएगी।
(192) यतीम (अनाथ) के सिर पर हाथ फेरा करो और गरीब को खाना खिलाया करो।
(191) बर्तन ढक दिया करो। मटके (पानी का बर्तन) का मुँह बंद कर दिया करो। चिराग (दीपक) बुझा दिया करो। और दरवाज़ा बंद कर दिया करो।
(190) अपने अच्छे नाम रखो।
(189) जिसने सुबह की नमाज़ पढ़ली वह अल्लाह के जिम्मे में आ गया।
(188) लुक़त़ा (गिरी-पड़ी चीज़) (उठाने) का हुक्म।