1. सामग्री
  2. अल्लाह के पैगंबर मुह़म्मद सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम का गैर-मुस्लिमों के साथ व्यवहार
  3. उनके अत्याचारों पर सब्र करना

उनके अत्याचारों पर सब्र करना

(2) उनके अत्याचारों पर सब्र करना

नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अपने नसब और पड़ोस के लेहाज़ से अपने करीबी लोगों यानी अपने चाचा अबू लहब और उसकी पत्नी के अत्याचारों पर धैर्य से काम लेते थे। आप हज के दिनों में बाज़ारों और लोगों की बैठकों में जाते और उन्हें इस्लाम में आमंत्रित किया करते थे, तो आपका चाचा अबू लहब आप का के पीछे पीछे छ्क्कर काटता और लोगों को इस्लाम अपनाने से रोकने के लिए आपके बारे में लोगों से कहता फिरता की ये झूठा है, ये झूठा है, और उसकी पत्नी पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के रास्ते में कांटे और पीड़ा देने के सामान  इकट्ठा करके डाला करती थी।

लेकिन हाँ, कभी-कभी काफिर की ओर से होने वाले अत्याचारों का उस पर ज़ुलम किये बिना इस प्रकार जवाब देना आवश्यक होता है, जिस से वह अत्याचार से रुक जाए। जैसा कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उन लोगों के लिए बद्दुआ (शाप) कर के किया जिन्होंने आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम की पीठ पर ओझड़ी और कूड़ा डाला था लेकिन आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने उनके जैसा न तो किसी भी बुरे काम द्वारा उन पर अत्याचार किया और न ही उनसे कोई अश्लील शब्द बोले, और उनको शाप देना एक प्रभावी तरीक़ा था जिसका परिणाम वे अच्छी तरह जानते थे। इसका पता इस से चलता है कि जैसे ही उन्होंने आपका शाप सुना, उन्होंने तुरंत हँसना बंद कर दिया, और उनमें से किसी ने भी यह नहीं कहा कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उन्हें शाप दे कर ग़लत किया।

इमाम बुखा़री ने हजरत आईशा (رضی اللہ عنہا) से उल्लेख की गई एक ह़दीस़ बयान की है कि हजरत आईशा फ़रमाती हैं कि उन्होंने नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लेही वसल्लम से पूछा: क्या आप पर कोई दिन उह़ुद के दिन से भी ज्यादा कठिन गुज़रा है? आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने इस पर फ़रमाया: तुम्हारी क़ौम (क़ुरैश) की तरफ से मैंने कितनी मुस़ीबतें उठाई हैं लेकिन उस सारे दौर में अ़क़बा का दिन मुझ पर सबसे ज़्यादा कठिन था।

यह उस समय की बात है जब मैंने ताइफ़ के सरदार केनाना इब्ने अ़बद या लैल बिन बिन अ़बद केलाल के हां अपने आप को पेश किया था लेकिन उसने  इस्लाम स्वीकार नहीं किया और मेरा निमंत्रण अस्वीकार कर दिया।

मैं वहां से बहुत दुखी होकर लौटा। फिर जब मैं क़रनुस्आ़लिब (ताइफ़ के रास्ते पर एक जगह का नाम है) पहुंचा तब मुझे कुछ होश आया। मैंने अपना सिर उठाया तो क्या देखता हूं कि बदली का एक टुकड़ा मेरे ऊपर छाया किए हुए है। और मैंने देखा कि ह़ज़रत जिबरील अ़लैहिस्सलाम उसमें मौजूद हैं, उन्होंने मुझे आवाज़ दी और कहा कि अल्लाह तआ़ला ने आपके बारे में आप की क़ौम की बातें और उनके जवाबात सुने हैं। आपके पास अल्लाह तआला ने पहाड़ों का फ़िरिश्ता भेजा है आप उनके बारे में जो चाहे उसका उसे ह़ुक्म दे दें। उसके बाद मुझे पहाड़ों के फ़िरिश्ते ने आवाज़ दी, उसने मुझे सलाम किया और कहा कि ऐ मोह़म्मद!

फिर उन्होंने भी वही बात कही कि आप जो चाहें उसका मुझे हु़क्म करें (आज्ञा दें) अगर आप चाहें तो मैं दोनों त़रफ़ के पहाड़ उन पर लाकर मिला दूं जिनसे वह चकनाचूर हो जाएं?!! नबी ए करीम स़ल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने फ़रमाया: मुझे तो इसकी उम्मीद है कि अल्लाह तआ़ला इनकी अगली पीढ़ी से ऐसी औलाद पैदा करेगा जो स़िर्फ़ अकेले अल्लाह ही की इ़बादत करेगी और उसके साथ किसी को शरीक ना ठहराएगी (सह़ीह़ बुखा़री :4/83)

उपर्युक्त ह़दीस़ ए पाक में नबी करीम स़ल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम अपनी प्यारी पवित्र पत्नी से बयान करते हैं कि आप स़ल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम को अपनी कौम से जो तकलीफें पहुंचीं वह उन तकलीफों से कहीं ज़्यादा सख़्त थीं जो आप स़ल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम को उह़ुद के युद्ध के दौरान पहुंचीं।

वह उह़ुद का युद्ध कि जिसमें एक बद क़िस्मत काफ़िर ने आप स़ल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम पर एक पत्थर ऐसा फेंक कर मारा कि जिस से आपके कुछ मुबारक दांत शहीद हो गए, आपका पवित्र चेहरा ज़ख़्मी हो गया और आपकी ख़ौद(योद्धा की टोपी) टूट कर उस की कड़ियां आपके पवित्र चेहरे में इस तरह घुस गईं कि ह़ज़रत अबू उ़बैदा बिन जरराह़ रद़ियल्लाहू अ़न्हू के उन्हें निकालने में सामने के दांत टूट गए और बड़ी मुश्किल से उन्हें निकाल पाए। लेकिन नबी ए करीम स़ल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम का पवित्र चेहरा ख़ून से लथपथ था और ख़ून थम नहीं रहा था यहां तक कि ह़ज़रत फात़िमा रद़ियल्लाहू तआ़ला अ़न्हा ने जब देखा कि ख़ून बंद होने की बजाय बढ़ता ही जा रहा है तो आप रद़ियल्लाहू तआ़ला अ़न्हा ने चटाई का एक टुकड़ा लेकर जलाया और जब वह जलकर राख हो गया तो आप स़ल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम के ज़ख्मों पर उसे चिपकाया तब जाकर वह ख़ून बंद हुआ। लेकिन इन सब के बावजूद भी नबी ए करीम स़ल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम इरशाद फ़रमाते हैं कि अ़क़बा के दिन जो आपको तकलीफ़ पहुंची वह इनसे भी ज़्यादा सख़्त थी

नबी ए अकरम स़ल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने विस्तार से तो बयान नहीं फ़रमाया कि आपको उस दिन क्या तकलीफ पहुंची, लेकिन हां! आप स़ल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने उस दिन की अपनी ह़ालत अवश्य बयान फ़रमाई है। वह यह कि आप स़ल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम वहां से उदास، रंजीदा होकर निकले। यहां तक कि आप उदासी की वजह से अपने आप को भूल गए। और क़रनुस्स़आ़लिब में पहुंचकर आप बह़ाल हुए। इस ह़ालत से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि आप स़ल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम को उस समय कितनी तकलीफ हुई होगी?! और कितना बड़ा गुनाह और जुर्म उस क़ौम ने आपके साथ किया होगा कि अल्लाह तबारक व तआ़ला ने ह़ज़रत जिबरील के साथ पहाड़ों के फ़रिश्ते को आप स़ल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम के पास भेज दिया ताकि वह मक्का के पहाड़ों में से दो पहाड़ों को उन पर मिलाकर उन्हें धंसा दे। और यह भी कि आप स़ल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम के अन्दर किस प्रकार धैर्य की क्षमता थी और वह कितने दयालु और कृपालु थे कि आप उस वक्त भी यह इरशाद फरमा रहे हैं कि मुझे तो इसकी उम्मीद है कि अल्लाह तआ़ला उनकी आने वाली पीढ़ी से ऐसी औलाद पैदा करेगा जो स़िर्फ़ अकेले अल्लाह ही की इ़बादत (पूजा) करेगी, और उसके साथ किसी को शरीर न ठहराएगी।?

Previous article Next article
पैगंबर हज़रत मुहम्मद के समर्थन की वेबसाइटIt's a beautiful day