1. सामग्री
  2. अल्लाह के पैगंबर मुह़म्मद सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम का गैर-मुस्लिमों के साथ व्यवहार
  3. क्या काफिरों के लिए बद्दुआ करने की अनुमति है?

क्या काफिरों के लिए बद्दुआ करने की अनुमति है?

इमाम बुख़ारी ने अपनी सहीह बुख़ारी में, "मुशरिकों के लिए हार और भूकंप की प्रार्थना करने का बाब"  के नाम से एक अध्याय लिखा है और इसमें उन्होंने अब्दुल्लाह इब्न -ए- अबी औफा रद़ियल्लाहू अ़न्हू से एक हदीस रिवायत की है। अब्दुल्लाह इब्न -ए- अबी औफा कहते हैं: रसूल ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने अह्ज़ाब की लड़ाई (غزوه أحزاب) के दिन मुशरिकों को बद्दुआ दी: “ऐ अल्लाह! किताब नाज़िल करने वाले! तुरन्त हिसाब लेने वाले! काफिरों की सेना को हार हो! ऐ अल्लाह  उन्हें हार दे! और उन्हें हिला कर रख दे।

और ह़ज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद रद़ियल्लाहू अ़न्हू फरमाते हैं: नबी -ए- करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम काबा की छाँव में नमाज़ अदा कर रहे थे तो अबू जहल और क़ुरैश के कुछ लोग  उठे और मक्का के किसी कोने में से ज़बह किये हुए ऊंट का गोबर, खून और ओझड़ी उठा कर लाए और जब नबी -ए- करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम सजदे में गए तो उन्होंने वह गंदगी नबी -ए- करीम पर फेंक दी। ह़ज़रत फातिमा रद़ियल्लाहू अ़न्हा ने आकर उस गंदगी को आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम के ऊपर से हटाया, नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने नमाज़ ख़त्म की और अल्लाह से दुआ की: “ऐ अल्लाह! कुरैश को नष्ट कर दे। ऐ अल्लाह! कुरैश को नष्ट करदे। ऐ अल्लाह! कुरैश को नष्ट कर दे। फिर अबू जहल बिन हेशाम , उत्बा बिन रबीआ, वलीद बिन उत्बा ,उबै बिन खलफ और उक़्बा बिन अबी मुईत का नाम लिया। ह़ज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद रद़ियल्लाहू अ़न्हू फरमाते हैं: ”मैंने उन सभी को बद्र की लड़ाई (युद्ध) में मरा हुआ पाया।“

और ह़ज़रत आइशा ह़ज़रत फातिमा रद़ियल्लाहू अ़न्हा से यह उल्लेख है कि कुछ यहूदी नबी -ए- करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम की सेवा में आए और कहा: “अस्सामु अलैकुम (तुम पर मौत आए)।“ इसलिए मैंने उन पर लानत भेजी। तो आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने फरमया: तूम्हें क्या हुआ? मैंने कहा: 'क्या आप ने  नहीं सुना कि उन लोगों ने क्या कहा? नबी -ए- करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने फरमया: क्या तुमने नहीं सुना जो मैंने जवाब दिया? "व अलैकुम" यानी तुम पर भी वही (मौत) आए। (अर्थात्, मैंने एक भी बुरा शब्द नहीं बोला, लेकिन उन्की बात उन्ही को वापस कर दी) (3/233)

इन सभी हदीसों को मिलाने से पता चलता है कि जब काफिरों और मुशरिकों ने नबी -ए- करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम को तकलीफ दे कर उनके प्रति अपनी शत्रुता दिखाई जैसा कि कुरैश और यहूद ने किया, या वे पैगंबर से लड़ने के लिए तैयार हो गए जैसा कि गज़वा- ए- अह्ज़ाब के अवसर पर उन लोगों ने किया, या आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम को धोखा दिया , जैसा कि क़बीला -ए- मुद़र ने किया? तभी नबी -ए- करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने उनके कर्मों के कारण उन्हें बद्दुआ दी। और इसके इलावा कहीं से यह सिद्ध नहीं कि आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने कभी किसी एैसे व्यक्ति को बद्दुआ दी हो इस्का हक़दार नहीं, बल्कि इसके विपरीत, जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया कि आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम उनके लिए हिदायत की प्रार्थना किया करते थे। जैसा कि पीछ्ले पन्नों में क़बीला -ए- दोस ( दोस जनजाति) के बारे में बयान हुआ।

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