1. सामग्री
  2. अल्लाह के पैगंबर मुह़म्मद सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम का गैर-मुस्लिमों के साथ व्यवहार
  3. गैर मुस्लिमों के खाने खाना और उनकी पीने की चीजों को पीना।

गैर मुस्लिमों के खाने खाना और उनकी पीने की चीजों को पीना।

(4) गैर मुस्लिमों के खाने खाना और उनकी पीने की चीजों को पीना।

याद रखें कि खाने निम्नलिखित प्रकार के होते हैं:

(1) पेड़ों-पौधों पर उतरने वाला खना: जैसे कि सब्जियाँ, फल आदि और जो कुछ भी उनसे से बनाया जाता हो जैसे कि मुरब्बा, अचार, सिरका आदि। (यह चीजें तो बिना किसी शर्त के खाई जा सकती हैं।)

(2) गोश्त का खाना: खुश्की के जानवरों का हो या समुद्री जानवरों का हो जैसे की मछली या घरेलू पालतू परिंदों का जैसे मुर्गी आदि। मुसलमान को जानवर और परिंदों का गोश्त खाने के लिए यह जरूरी है कि उन्हें इस्लामी तरीके़ से ज़िबह किया गया हो और ज़िबह़ करते समय उस पर अल्लाह का नाम लिया गया हो। (वरना अगर इस्लामी तरीके़ से ज़िबह़ न किया गया हो बल्कि ऐसे ही उसे गला घोट कर मार दिया गया हो या मुर्दार जानवर हो या अल्लाह के अलावा के लिए ज़िबह़ किया गया हो या काफिर या मुरतद्द -जो इस्लाम धर्म से फिर गया हो- ने ज़िबह़ किया हो तो उस जानवर का गोश्त ह़राम है। लिहाज़ा मुसलमान को उसका गोश्त खाना जायज़ नहीं है।) सर्वशक्तिमान अल्लाह क़ुरआन मजीद में इरशाद फ़रमाता है:

﴿حُرِّمَتْ عَلَيْكُمُ الْمَيْتَةُ وَالدَّمُ وَلَحْمُ الْخِنزِيرِ وَمَا أُهِلَّ لِغَيْرِ اللَّهِ بِهِ وَالْمُنْخَنِقَةُ وَالْمَوْقُوذَةُ وَالْمُتَرَدِّيَةُ وَالنَّطِيحَةُ وَمَا أَكَلَ السَّبُعُ إِلَّا مَا ذَكَّيْتُمْ وَمَا ذُبِحَ عَلَى النُّصُبِ وَأَن تَسْتَقْسِمُوا بِالْأَزْلَامِ ۚ ذَٰلِكُمْ فِسْقٌ﴾

तर्जुमा: तुम पर ह़राम किए किया गया मुर्दार और खून और सूअर का गोश्त और वह जिसके ज़िबह़ में अल्लाह के अलावा का नाम लिया गया और जो गला घोटने से मरे और जो बिना धार की चीज़ से मारा हो और जो ऊंचाई से गिरकर मरा और जिसे किसी जानवर ने सींग मारा और जिसे कोई दरिंदा खा गया। मगर जिन्हें तुम ज़िबह़ करो (तो वो ह़लाल है। और तुम पर हराम किया गया) जो (बुतों यानी मूर्तियों से नज़दीक होने के मकसद से) किसी थान पर ज़िबह़ किया गया और पांसे से डालकर बांटा करना यह गुनाह का काम है। और अल्लाह फरमाता है:

(सूरह अल-माएदह, आयत संख्या:3)

﴿ وَلَا تَأْكُلُوا مِمَّا لَمْ يُذْكَرِ اسْمُ اللَّهِ عَلَيْهِ وَإِنَّهُ لَفِسْقٌ ۗ وَإِنَّ الشَّيَاطِينَ لَيُوحُونَ إِلَىٰ أَوْلِيَائِهِمْ لِيُجَادِلُوكُمْ ۖ وَإِنْ أَطَعْتُمُوهُمْ إِنَّكُمْ لَمُشْرِكُونَ﴾

तर्जुमा: और उसे न खाओ जिस पर अल्लाह का नाम न लिया गया हो। और यकीनन वह गुनाह है। और बेशक शैतान अपने दोस्तों के दिलों में डालते हैं कि तुमसे झगड़ें। और अगर तुम उनका कहना मानो तो उस समय तुम मुशरिक हो।

(सूरह अल-अनआ़म, आयत संख्या: 131)

लिहाज़ा ऊपर गुजरी हुई आयतों से पता चलता है कि गैर-मुस्लिम का ज़िबह़ किया हुआ जानवर खाना हलाल नहीं है। लेकिन इस आदेश से किताब वाले यानी यहूदी और ईसाई अलग हैं। क्योंकि उनका ज़िबह़ किया हुआ खाना मुसलमान के लिए जायज है जबकि उन्होंने जानवर को इस्लामी तरीके़ से ज़िबह़ किया हो। (और ज़िबह़ करते समय अल्लाह का नाम लिया हो न कि ह़ज़रत मसीह़ अ़लैहिस्सलाम का नाम लिया हो।) सर्वशक्तिमान अल्लाह क़ुरआन मजीद में इरशाद फ़रमाता है:

﴿الْيَوْمَ أُحِلَّ لَكُمُ الطَّيِّبَاتُ ۖ وَطَعَامُ الَّذِينَ أُوتُوا الْكِتَابَ حِلٌّ لَّكُمْ وَطَعَامُكُمْ حِلٌّ لَّهُمْ ۖ وَالْمُحْصَنَاتُ مِنَ الْمُؤْمِنَاتِ وَالْمُحْصَنَاتُ مِنَ الَّذِينَ أُوتُوا الْكِتَابَ مِن قَبْلِكُمْ إِذَا آتَيْتُمُوهُنَّ أُجُورَهُنَّ مُحْصِنِينَ غَيْرَ مُسَافِحِينَ وَلَا مُتَّخِذِي أَخْدَانٍ ۗ وَمَن يَكْفُرْ بِالْإِيمَانِ فَقَدْ حَبِطَ عَمَلُهُ وَهُوَ فِي الْآخِرَةِ مِنَ الْخَاسِرِينَ﴾

तर्जुमा: आज तुम्हारे लिए ह़लाल हुईं पाक चीजें और किताब वालों का खाना तुम्हारे लिए ह़लाल हुआ और तुम्हारा खाना उनके लिए ह़लाल है और पवित्र मुसलमान औरतें और तुमसे पहले जिनको किताब मिली उनकी पवित्र औरतें जब तुम उन्हें उनके मेहर दो कैद (निकाह़) में लाते हुए न ऐयाशी करते न दोस्त बनाते। और जो मुसलमान से काफिर हुआ उसका किया-धरा सबा अकारत गया और वह आखिरत में नुकसान उठाने वालों में से है।

(सूरह अल-माएदह, आयत संख्या: 5)

लेकिन जिसे इस बात का यकीन हो कि उसे इस्लामी तरीके़ के मुताबिक ज़िबह़ नहीं किया गया है तो उसे उसका खाना जायज़ नहीं है।

इमाम बुखारी "उन जानवरों के बयान जिनको थानों और मूर्तियों के नामों पर ज़िबह़ किया गया हो" के पाठ में उल्लेख करते हैं कि मूसा बिन उ़क़बह ने बताया कि मुझे सालिम ने खबर दी, उन्होंने ह़ज़रत अ़ब्दुल्लाह बिन उ़मर रद़ियल्लाहु अ़न्हुमा से सुना और उनसे अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने बयान किया कि आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम की बलदह़ नामी जगह के निचले हिस्से में ज़ैद बिन अ़म्र बिन नोफिल से मुलाकात हुई। -यह आप पर वह़ी यानी अल्लाह की तरफ से संदेश आने से पहले की बात है- तो आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम के सामने मेहमानी के तौर पर एक दस्तरख्वान लाया गया जिसमें गोश्त था। (मगर जानवर को ज़िबह़ करते समय मूर्तियों का नाम लिया गया था।) तो आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने उसे खाने से मना कर दिया और इरशाद फ़रमाया: "तुम जो जानवर अपने बुतों (मूर्तियों) के नाम पर ज़िबह़ करते हो मैं उन्हें नहीं खाता हूँ। मैं केवल उसी जानवर का गोश्त खाता हूँ जिसको ज़िबह़ करते समय अल्लाह का नाम लिया गया हो।"

मुसलमान को किताब वालों यानी यहूदियों और ईसाइयों के ज़िबह़ किए हुए जानवर के तरीके के पता होने और न होने के एतबार से निम्नलिखित तीन सूरते हैं:

पहली: मुसलमान को यह यकीन हो कि उसे इस्लामी तरीके के अलावा किसी और तरीके से ज़िबह़ किया गया है या उसे इसका ज़्यादा गुमान हो तो ऐसी सूरत में उसके लिए यह खाना जायज नहीं है।

दूसरी: सूरत उसे इस बात का यकीन हो कि इसे उसे इस्लामी तरीके से ज़िबह़ किया गया है या इसका ज़्यादा गुमान हो तो ऐसी सूरत में उसका खाना जायज है।

तीसरी: उसको दोनों सूरतों का बराबर का शक हो और किसी भी एक सूरत का ज़्यादा गुमान न हो तो उसे खा सकता है क्योंकि असल जायज़ होना है। लेकिन बचने में एहतियात और परहेज़ है।

उनके पीने की चीज़ें: दूध, जूस वगैरह अन्य पीने वाली चीज है जबकि वह नाजायज़ न हो या नाजायज़ व ह़राम चीजों से न बनी हो। हर वह चीज जिसकी अस्ल हमारी शरीयत में जायज़ हो तो उसका गैर-मुस्लिमों से लेकर पीना जायज़ है। और जो हमारी शरीयत में ह़राम हो जैसे शराब तो उसका पीना ह़राम है भले ही वह किसी भी चीज़ से बनी हो जब तक कि उसमें ह़राम होने का कारण पाया जाता हो। और वह कारण है बुद्धि को खत्म करना। इमाम बुखारी ह़ज़रत इब्ने उ़मर रद़ियल्लाहु अ़न्हु से उल्लेख करते हैं कि उन्होंने फ़रमाया कि ह़ज़रत उ़मर रद़ियल्लाहु अ़न्हु मिम्बर पर खड़े हुए और फरमाया: "अल्लाह की प्रशंसा और दूरूद के बाद! शराब के ह़राम होने का आदेश (बहुत पहले) उतर चुका है। तो वह (यानी शराब) पांच चीजों से बनती है: अंगूर, खजूर, शहद, गेहूं और जौ। और शराब वह है जो बुद्धि को खत्म करे।

ह़ज़रत आ़एशा रद़ियल्लाहु अ़न्हा फरमाती हैं कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम से "बितअ़" -शहद की शराब जो यमन के लोग पीते थे- के बारे में पूछा गया तो अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया: "जो भी पीने वाली चीज नशा करे वह ह़राम है।"

इसी तरह अगर किसी भी पीने वाली चीज के बारे में यह साबित हो जाए कि वह किसी ह़राम चीज जैसे की मुर्दा जानवर, या सूअर या कुत्ते आदि के गोश्त या उनकी चर्बी आदि से तैयार की गई है या किसी और ह़राम चीज से बनाई गई है तो उसका पीना ह़राम है। और ज़रूरी है कि नए-नए चीजों के जायज़ होने या उनके हराम होने के मसलों को व्यक्तिगत खोजों पर न छोड़ा जाए बल्कि बादशाह या मुफ्तियों और उ़लमा ए किराम को चाहिए कि वे उनके संबंध शरीयत का आदेश बयान करके लोगों की रहनुमाई करें जैसा कि ऊपर ह़ज़रत आ़एशा रद़ियल्लाहु अ़न्हा से उल्लेखित ह़दीस़ शरीफ में बयान हुआ कि लोगों ने नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम से "बितअ़" के बारे में पूछा और नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने ही उसके नाजायज़ होने को बताया और साथ में उसके कारण को भी बयान करके उनकी रहनुमाई की।

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