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मुस्लिमों और ग़ैर-मुस्लिमों का एक-दूसरे को उपहार देना:
(7) मुस्लिमों और ग़ैर-मुस्लिमों का एक-दूसरे को उपहार देना:
सीरत (जीवनी) की किताबों में उल्लेख किया गया है कि पवित्र पैगंबर स़ल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने मिस्र के राजा मुक़ौक़िस के उपहारों को स्वीकार किया था, और उन्हीं उपहारों में हज़रत मारिया क़िब्त़िया रद़ियल्लाहू अ़न्हा भी थीं, जिनसे आप स़ल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम के बेटे ह़ज़रत इब्राहिम रद़ियल्लाहू अ़न्हू का जन्म हुआ था।
और इमाम बुख़ारी अपनी किताब स़ह़ीह़ बुख़ारी में ह़ज़रत अब्दुल्लाह बिन अबी मुलैका से रिवायत करते हैं कि पवित्र पैगंबर स़ल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम की सेवा में रेशम की कुछ क़बाएँ (कोट) उपहार के रूप में लाई गईं जिनमें सोने के बटन लगे थे, नबी स़ल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने उन्हें अपने कुछ स़ह़ाबा (साथियों) में बांट दिया। (7/102)
और इमाम मुस्लिम ने अपनी किताब स़ह़ीह़ मुस्लिम में ह़ज़रत अ़ब्बास बिन अ़ब्दुल मुत्त़लिब से रिवायत की है कि उन्होंने कहा: मैं ह़ुनैन (एक विशाल युध्द) में अल्लाह के रसूल स़ल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम के साथ था तो मैं और अबू सुफ़यान बिन ह़ारिस़ बिन अ़बदुल मुत्त़लिब -आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के चचा ज़ाद भाई- दोनों पैगंबर स़ल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम के संग रहे और उनसे जुदा नहीं हुए, और आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम एक स़फेद ख़च्चर पर सवार थे, जिसे फ़िर्वह इब्न नफ़्फ़ास़ा जुज़ामी ने आप स़ल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम को उपहार के रूप में दिया था। (5/166)
इसलिए, उपरोक्त ह़दीस़ों से यह नतीजा निकाला जाता है कि पवित्र पैग़ंबर स़ल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम का गै़र-मुम्लिमों से उपहार को स्वीकार करना इसके जाइज़ होने का प्रमाण है, बस शर्त़ यह है कि वे उपहार ह़लाल हों और ह़राम न हों।