1. सामग्री
  2. अल्लाह के पैगंबर मुह़म्मद सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम का गैर-मुस्लिमों के साथ व्यवहार
  3. गैर-मुस्लिम बीमारों को देखने जाना।

गैर-मुस्लिम बीमारों को देखने जाना।

(6) गैर-मुस्लिम बीमारों को देखने जाना। 

इमाम बुखारी अपनी किताब सह़ीह़ बुखा़री के "मुशरिक -गैर मुस्लिम- की इयादत -बीमार को देखने जाना- पाठ में हज़रत अनस रद़ियल्लाहू अ़न्हू से उल्लेख करते हैं कि एक यहूदी लड़का नबी ए करीम स़ल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम की सेवा करता था जब वह बीमार हुआ तो नबी करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम उसे देखने के लिए गए और इरशाद फ़रमाया: "इस्लाम ले आओ।" तो वह इस्लाम ले आया।

हज़रत अबू सईद खुदरी रद़ियल्लाहू अ़न्हू बयान करते हैं कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम के कुछ सह़ाबा एक सफर पर निकले जो उन्हें तय करना था। रास्ते में वो अरब के एक कबीले में ठहरे और चाहा के कबीले वाले उनकी मेहमानी करें लेकिन उन्होंने मना कर दिया। फिर उस कबीले के सरदार को बिच्छू ने काट लिया। उसे अच्छा करने की हर तरह की कोशिश उन्होंने कर डाली लेकिन किसी से कुछ फायदा नहीं हुआ। आखिर उन्हीं में से किसी ने कहा कि ये लोग जो तुम्हारे कबीले में ठहरे हैं उनके पास भी चलो। हो सकता है कि उनमें से किसी के पास कुछ हो। तब वो लोग सह़ाबा के पास आए और कहा: "ऐ लोगो! हमारे सरदार को बिच्छू ने काट लिया है। हमने हर तरह की बहुत कोशिश कर डाली लेकिन किसी से कोई फायदा नहीं हुआ। क्या तुम लोगों में से किसी के पास कुछ है।" सहाबा में से एक शख्स -अबू सईद खुदरी रद़ियल्लाहू अ़न्हू- बोले कि हाँ अल्लाह की कसम मैं झाड़-फूंक जानता हूँ। लेकिन हमने तुमसे कहा था कि हमारी मेहमानी करो (हम मुसाफिर हैं) तो तुमने मना कर दिया था। इसलिए मैं भी उस समय तक नहीं झाड़ूँगा जब तक तुम मेरे लिए उसकी मजदूरी न ठहरा दो। तो उन लोगों ने कुछ (30) बकरियों पर समझौता कर लिया। अब यह सहाबी चले। यह जमीन पर थूकते जाते और الحمد لله رب العالمين (अल ह़मदुलिल्ला ही रब्बिल आ़लमीन) पढ़ते जाते। इसकी बरकत से वह ऐसा हो गया जैसे उसकी रस्सी खुल गई हो और वह इस तरह चलने लगा जैसे उसे कोई तकलीफ ही न रही हो। बयान है की फिर वादे के मुताबिक कबीले वालों ने उनकी मजदूरी (30 बकरियाँ) दे दीं। कुछ लोगों ने कहा उनको बांट लो लेकिन जिन्होंने झाड़ा था उन्होंने कहा कि अभी नहीं। बल्कि पहले हम अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम के पास चलते हैं और आपको पूरी स्थिति समझाते हैं। फिर देखते हैं कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम हमें किया आदेश देते हैं। जब वह नबी स़ल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम की सेवा में आए, तो उन्होंने इसका जि़क्र किया। तो आप स़ल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने कहा: “तुम्हें कैसे पता चला कि इस से दम किया जा सकता है? (बहर हा़ल) तुमने अच्छा किया, जाओ और उन्हें बांटलो और अपने संग मेरा भी एक ह़िस्स़़ा (साझा) लगाओ। (यह हदीस बुख़ारी और मुस्लिम दोनों द्वारा रिवायत की गई है, और यहाँ इमाम बुख़ारी की रिवायत ली गयी है)

नबी स़ल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने यहाँ दो चीजों का इक़रार (स्विकार) कर के उनकी अनूमती दी है:

मुशरिक (गै़र-मुस्लिम) पर झाड़-फूँक करना:

इस से यह स्पष्ट रूप से स़ाबित होता है कि झाड़-फूंक के द्वारा मुशरिक का इ़लाज किया जा सकता है, और संभवत: यह साबित होता है कि अन्य दूसरे त़रीक़ों से भी उसका इलाज करना जाइज़ है।

2- इस पर मज़दूरी लेना:

 यदि मरीज़ एक गै़र-मुस्लिम है तो मस़लेह़त के आधार पर ही उसका हाल चाल पूछा जाए, जैसे कि उसे इस्लाम में आमंत्रित करने का इरादा हो, तो ऐैसी स्तिथि में अनिवार्य रूप से या इस्तेह़बाबी रूप से उसका हाल चाल पूछने के लिए जाने की अनुमति है, और यह हदीस द्वारा साबित है। एक यहूदी लड़का पैगंबर स़ल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम की सेवा किया करता था। जब वह बीमार पड़ गया, तो पैगंबर स़ल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम उसके पास गए और उसके सिर की ओर बैठ गए, फिर उससे कहा: तुम मुसलमान हो जाओ। उसने अपने पिता की ओर देखा जो उसके साथ था, तो उसके पिता ने उससे कहा: “अबू अल-क़ासिम (मुह़म्मद) की बात मान लो। तो वह मुसलमान बन गया। आप स़ल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम यह कहते हुए खड़े हो गए: “सभी प्रशंसा उस (अल्लाह) के लिए है जिसने इसे आग (नरक) से बचाया।"

और इमाम इब्ने ह़जर (अल्लाह तआला उनसे प्रसन्न हो) कहते हैं: इब्न ए बत्त़ाल ने कहा: "उस (काफ़िर) की इ़यादत उस वक़त जाइज़ है जब यह आशा एवं निय्यत हो कि वह इस्लाम में परिवर्तित हो जाएगा, लेकिन अगर  इसकी यह निय्यत ना हो तो जाइज़ नहीं"! और यह स्पष्ट है कि इसका ह़ुक्म  उद्देश्य के अनूसार बदल जाता है, और कभी-कभी काफ़िर की इयादत किसी और मस़लेह़त पर आधारित होती है। मावर्दी ने कहा: ज़िम्मी  व्यक्ति (इस्लामी राज्य में रहने वाला गैर-मुस्लिम नागरिक) की इयादत करने की अनुमति है, और सवाब पड़ोस या रिश्तेदारी के एक प्रकार के सम्मान पर आधारित है। (फ़त्ह-अल-बारी, इब्न ए ह़जर, 10/119)

इस से हम यह नतीजा निकालते हैं कि:

1- अगर कोई गै़र-मुस्लिम बीमार पड़ जाए तो उसे देखने के लिए जाने और उसके स्वस्थ होने की प्रार्थना करने की अनुमति है, न कि उसके लिए अल्लाह की दया और क्षमा की प्रार्थना करने की।

2- एक मुस्लिम डॉक्टर गै़र-मुस्लिम का इलाज कर सकता है।

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