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व्य्वहार में दयालुता और भलाई करना:
(1) व्य्वहार में दयालुता और भलाई करना:
1- मक्का पर विजय के दिन, जब पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम काबा के तवाफ़ में लगे हुए थे, तो फ़ुदा़ला इब्न उमैर मलूह़ आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम पर अचानक हमला करने और आप को शहीद करने के इरादे से तवाफ़ में दाखिल हुए। नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को उनके दिल के इरादों से अवगत हो गए। जब तवाफ करते समय फ़ुदा़ला उनके पास आए तो नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने उनसे कहा: “तुम क्या सोच रहे हो?” फ़ुदा़ला ने बात टालते हुए कहा: “कुछ नहीं, मैं अल्लाह की याद में लगा हुआ था।” नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने उनसे कहा: “अल्लाह से माफ़ी मांगो।” साथ ही, उन्होंने फ़ुदा़ला के सीने पर अपना पवित्र हाथ रखा। फ़ुदा़ला कहते हैँ कि अल्लाह की क़सम! जैसे ही उन्हों ने अपना पवित्र हाथ मेरी छाती से उठाया, तो मेरे नज़्दीक पैगंबर सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम की तुलना में दूनिया की कोई भी चीज़ प्रिय नहीं थी। (किताब: अल-इसाबह फी तमयीज़ अल-सह़ाबा)
इस घटना से हमें यह पता चलता है कि फ़ुदा़ला दूसरे प्रकार के ग़ैर-मुस्लिम यानी मुनाफ़िक़ों में से एक थे, जो ज़ाहिर त़ौर पर मुसलमान हैं लेकिन वास्तव में काफ़िर और ग़ैर-मुस्लिम हैं, और यह भी यह पता चलता है कि तदबीर और सावधानी बरतने के साथ-साथ पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का उनके साथ अच्छा व्यवहार करने से, आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम से उनकी नफ़रत प्यार में बदल गई, और यह भी कि आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम के अच्छे व्यवहार ने एक व्यक्ति को मुनाफ़क़त के अंधेरों से बाहर निकाल कर इस्लाम की रोशनी में ले आया। और यही तो गै़र-मुस्लिमों के साथ व्य्वहार करने का असली उद्देश्य कि उन्हें (जहन्नम से) बचाने की कोशिश की जाए न कि उन्हें मारने और हलाक करने का प्रयास किया जाए।
2- उ़र्वह इब्न -ए- जु़बैर यह रिवायत करते हैं कि उसामा इब्न -ए- ज़ैद रद़ियल्लाहू अ़न्हू ने मुझे बताया कि नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम एक दराज़ गोश (गधे) पर सवार थे जिस पर पालान बंधा हुआ था और नीचे फ़िदक की बनी हुई एक मख़मली चादर बिछी हुई थी। आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम नें सवारी पर अपने पीछे उसामा इब्न -ए- ज़ैद रद़ियल्लाहू अ़न्हू को बैठाया था। आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम बनी हा़रिस़ इब्न -ए- ख़ज़रज में हज़रत सअ़द इब्न-ए- उ़बादा रद़ियल्लाहू अ़न्हू की इयादत के लिए जा रहे थे। यह घटना बद्र से पहले की है। आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम एक बैठक के क़रीब से गुज़रे जिसमें मुस्लिम, मूर्तिपूजक, और यहूदीससभी मौजूद थे। उनमें अब्दुल्ला इब्न-ए- अबी सलुल भी था, और उसी बैठक में अब्दुल्ला इब्न -ए- रवाह़ा भी मौजूद थे। जब उस बैठक में सवारी की धूल पड़ी तो अब्दुल्ला इब्न-ए- अबी सलुल ने अपनी नाक को अपनी चादर से ढँक लिया और कहा: “हम पर धूल मत उड़ाओ।“ तब पवित्रं पैग़ंबर सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने सलाम किया और वहाँ रुक गए। और सवारी से उतर कर उन्हें अल्लाह की त़रफ़ बुलाया, अब्दुल्ला इब्न-ए- अबी सलुल ने कहा: “ मियां! मैं इन बातों को नहीं समझता। अगर वह बात सच जो तुम कहते हो तो हमारी बैठकों में आकर हमें परेशान मत किया करो, अब अपनी सवारी पर वापस जाओ, अगर हम में से कोई आपके पास आया करे तो उसे ही यह बातें बताया करो।“ इस बात पर इब्न -ए- रावाह़ा ने कहा:“आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम हमारी बैठकों में आया कीजए क्योंकि हमें यह पसंद है।” फिर मुसलमानों, मुशरिकों और यहूदियों में इस बात पर तू-तू मैं-मैं शुरू हो गई और लगभग ऐसा हो गया कि वे कुछ इरादा कर बैठैं और एक-दूसरे पर ह़मला करदें, लेकिन आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम उनहें बराबर चुप कराते रहे। जब वे चुप हो गए, तो आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम अपनी सवारी पर बैठ कर सअ़द इब्न-ए- उ़बादा के पास आ गए। नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने उनसे फ़रमाया: “ऐ सअ़द! तुमने सुना कि अबू ह़ब्बाब -यानि अब्दुल्ला इब्न-ए- अबी सलुल- ने आज किस प्रकार की बात की है? ह़ज़रत सअ़द ने कहा: ऐ अल्लाह के रसूल! उसे माफ़ कर दीजिए और जाने दीजिए क़्यों की अल्लाह की क़सम! अल्लाह तआला ने आपको वह दिया है जो दिया है, इस बस्ती (मदीना मुनव्वरा) के सभी लोग (आपके यहाँ आने से पहले) इस बात से सहमत थे की उसे ताज पहनाएं और उसके सिर पर शाही पगड़ी बाँधें लेकिन जब अल्लाह तआला ने इस योजना को उस सत्य के कारण समाप्त कर दिया जो उसने आपको दिया है, इसलिए वह सत्य से ईर्ष्या करता है और इसीलिए उसने ऐसी ह़रकत की जो आपने देखा, इसलिए पवित्र पैगंबर सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने उसे क्षमा कर दिया।(स़ह़ीह़ बुख़ारी: 7/132)
आपने देखा कि कैसे अब्दुल्ला इब्न अबी सलूल ने इतने अपमानजनक तरीके से व्यवहार किया कि उसने अपने चेहरे को एक चदर से ढँक लिया और पैग़म्बर सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम से कहा कि हम पर धूल न उड़ाओ वग़ैरह वग़ैरह।
पैगंबर सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम के लिए उसके दिल में कितनी घृणा और शत्रुता थी। इन सभी बातों के बावजूद, पैग़ंबर सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम का उसे इस्लाम में आमंत्रित करना और वहां कु़रानशरीफ़ की तिलावत करना यह दर्शाता है कि उन्होंने गै़र-मुस्लिमों के साथ कितना अच्छा व्यवहार किया और उनके की तकलीफ़ देने वाली बातों और अत्याचारों को कितना सहन किया करते थे ।